Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 352
________________ टिप्पणियाँ २.४.५५ कृतगुणस्य-जिसमें गुण किया है उसका । अ, इ-ई, उ-ऊ, ऋ-ऋ और ल इनका क्रमसे अ; ए, ओ, अर् तथा अल होना यानी गुण होना । वधः-वर्ध में (Vवृध् ) गुण हुआ है। २४.७३ यक्-प्रत्यय-धातुसे कर्मणि रूप सिद्ध करनेका यक् ( य ) प्रत्यय है । २.४.८१. यहाँसे सूत्रों की वृत्तिमें कभी कभी अनुबंधके साथ धातु निर्दिष्ट किये गए हैं । उदा - हृञ् , इत्यादि । ३.१.५ चिद्वर्जिते प्रत्यये-२.४.१ और ५ में कहे गए इच्, एच् और हच् ये चित प्रत्यय है; उन्हें छोडकर अन्य प्रत्यय यानी चिद्वर्जित प्रत्यय । ३.१.७८ आचारे क्विबन्तस्य-आचार अर्थमें संज्ञासे धातु सिद्ध करनेका क्विप् प्रत्यय है; उससे अन्त होनेवाला शब्द यानी क्विबन्त । ३.१:८८ सतपां झलः .........झङ्खइ- संतपां झङ्खः ( ३.१.७६ ) सूत्रके नीचे कहा था कि निःश्वसिति, विलपति, उपालभते धातुओंको झंख आदेश होता है । उसका उल्लेख यहाँ विलपति धातुका दूसरा आदेश बताते समय किया गया है । ३.१.९७ हम्म गती-पाणिनिके धातुपाठमें ' द्रम्म हम्म मीम गलौ' ऐसा निर्देश है। ३. २ ३.२.२१ इनो नकारस्य-इन्नन्त शब्दोंमेंसे नकारका । उदा - कंचुकिन् शब्दमेंसे न् । ३.२.३२ शकाराकान्तश्चकारः-शकारसे आक्रान्त चकार यानी श्च । ३२६५ चूलिकापैशाचिक-चूलिकापैशाची । ३.३ ३.३.२ अम्मिए ... अण्णानु ॥ २ ॥ डॉ. वैद्यसंपादित हेमचंद्र प्राकृत. व्याकरणमें इस श्लोकमेंसे हल्लोहलेण शब्दकी संस्कृतछाया व्याकुलत्वेन ऐसी दी गई है। ३.३.३ लाक्षणिकस्य-व्याकरणके नियमानुसार आया हुआ, उसका । उदायथा - जिम ( ३.३.८ सूत्रानुसार )-जिव । ३.३.८ विबाहरि ... मुद्द ॥ ९ ॥ --- डॉ. वैद्यसंपादित हेमचंद्र प्राकृत व्याकरणमें तणु शब्दकी संस्कृत छाया तन्व्याः दी गई है। जिध तिध के उदाहरणजिध तिध तोडहि कम्मु ( कुमारपालचरित ८.४९)। ३.३.१६ भावेऽर्थे विद्वितौ त्वतलप्रत्ययौ--भाव अर्थ दिखानेके लिए त्व और तल ( ता ) तद्धित प्रत्यय विहित है ( पा. ५.१.११९ )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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