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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
(वर्तमानकाळ ) लोट् (आज्ञार्थ ) ( परोक्ष)
( अनद्यतन) ( ता - भविष्य ) लिङ् (विध्यर्थ ) (स्य - भविष्य ) लुङ (अद्यतन )
( वैदिक संस्कृतमें) लङ् . ( संकेतार्थ ) कोई वैयाकरण आगे दी हुई संज्ञाएँभी प्रयुक्त करते हैं-भवन्ती, वर्तमाना; अद्यतनी; शस्तनी; परोक्षा; श्वस्तनी; भविष्यन्ती; पञ्चमी; सप्तमी; क्रियातिपत्ति; आशीः । प्रथमपुरुष-व्याकरणमेंसे पुरुषवाचक संज्ञाएँ इसप्रकार होती हैं-प्रथम पुरुष (आजकी संज्ञा - तृतीय पुरुष । वह, वे ) । मध्यम पुरुष ( आजकी संज्ञा - द्वितीय पुरुष । तू , तुम । ) उत्तम पुरुष- ( आजकी संज्ञा - प्रथम पुरुष । मैं, हम )। एकत्वे वर्तमानौ एकवचनमें रहनेवाले । परस्मैपदात्मनेपदत्वेन विहितौ-परस्मैपद और आत्मनेपदमें विहित । धातुमें लगनेवाले प्रत्ययोंके दो प्रकार-परस्मैपद तथा आत्मनेपद-संस्कृतमें हैं। तिप्, तङ् - तृ. पु. एकवचनमें परस्मैपदका तिप्, और तङ् आत्मनेपदका है। हसइ ... रमए - संस्कृतमें हस् धातु परस्मैपदमें और रम् धातु आत्मनेपदमें है।
२.४.१० वर्तमानकालमें सर्व पुरुष और वचनोंमें अस् धातुको अस्थि आदेश हो जाता है।
२.४.१४ भावकर्मविहिते प्रत्यये-धातुसे कर्मणि अंग बनानेका य प्रत्यय है (धातोः यक् प्रत्ययः स्यात् भावकर्मवाचिनि सार्वधातुके परे । पा ३.१.६७ ऊपर सि. फो. )।
२.४.१९ क्त्वातुंतव्येषु -कत्वा, तुम् और तव्य प्रत्यय । पूर्वकालवाचक धातु. अव्यय सिद्ध करनेका क्त्वा प्रत्यय है। उदा-स्नात्वा । धातुसे हेत्वर्थक अव्यय सिद्ध करनेका तुम् प्रत्यय है । उदा- कर्तुम् । विध्यर्थ कर्मगि धातु. विशेषण सिद्ध करनेका तव्य प्रत्यय है । उदा - कर्तव्य । भविष्यत्कालविहित (प्रत्यय)-धातुमें भविष्यकाल सिद्ध करनेके लिए लगनेवाले प्रत्यय; उनके लिए २.४.२५-२७ देखिए ।
२.४.२० लोट-पंचमी, आज्ञार्थ । शतृप्रत्यय-वर्तमानकालवाचक कर्तरि धातु. विशेषण सिद्ध करनेका प्रत्यय ।
२४.२२ अनद्यतनादि-अद्यतन ( आजका काल ) छोडकर, बीत काल । लु ला लिट्-२.४.१ ऊपरकी टिप्पणी देखिए ।
२.४.४२ शतृशानच्ये दो कृत् प्रत्यय हैं । ये प्रत्यय धातुओंमें लगकर वर्तमान कर्तरि धातु. विशेषण सिद्ध होते हैं।
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