Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 349
________________ त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण २.१.२ परिमाणार्थस्य वतुप्पत्ययस्य-वतुप् ( वतु ) एक तद्धित प्रत्यय है । परिमाण अर्थ दिखानेके लिए वह यद्, तद् एतद्, किम् और इदम् सर्वनामोंको मोडा जाता है । उदा-यावत् , तावत्, इत्यादि ।। २.१.३ डानुबन्धाः ( आदेशाः )- जिनमें ड् अनुबंध ( इत् ) है ( ऐसे भादेश )। २.१.४ पथो ण नित्यम्-पाणिनिका सूत्र है पन्थो ण नित्यम् (५.१.७६) । २.१.५ खप्रत्ययस्य-ख एक तद्धित प्रत्यय है। लगते समय उसका ईन ऐसा रूपांतर हो जाता है। २.१.६ प्रत्ययस्य-छ ( ईय ) एक तद्धित प्रत्यय है । २.१.७ त्रलप्रत्ययस्य-सप्तम्यन्त सर्वनामोंको लगनेवाला एक तद्धित प्रत्यय त्रल् है । उदा - यत्र, तत्र, इत्यादि। २.१.८ इदमर्थे विहितस्य छप्रत्ययस्य-इदमर्थमें ( अमुकका यह ) भस्मद्, युष्मद्, इत्यादि शब्दोंको लगनेवाला छ एक तद्धित प्रत्यय है । २.१.१० अण् प्रत्ययस्य-इदमर्थमें ( अमुकका यह ) लगनेवाला अण् एक तद्धित प्रत्यय है। २.१.११ उपमानार्थे विहितस्य वतिप्रत्ययस्य-उपमान, तुलना, इत्यादि दिखानेके लिए जोडा जानेवाला वति प्रत्यय (तेन तुल्यं क्रिया चेद्वतिः । पा. ५.१.११५)। २.१.१२ भावार्थे विहितस्य स्वप्रत्ययस्य--भाव दिखानेके लिए ल ऐसा तद्धित प्रत्यय कहा गया है । उदा - अश्वत्व ।। २.१.१४ तसिलप्रत्ययस्य--सर्वनामोंको लगनेवाला तसिल (तस्) एक तद्धित प्रत्यय है। उदा - कुतः, यतः, इत्यादि । २.१.१५ दाप्रत्ययस्य- सर्व, एक, इत्यादिको जोडा जानेवाला एक तदित प्रत्यय दा है । उदा - सर्वदा, इत्यादि । । २.१.१६ कृत्वसुचूप्रत्ययस्य--पौनःपुन्यार्थ दिखानेके लिए संख्यावाचकों को नोडा जानेवाला कृत्वसुच ( कृत्वस ) एक तद्धित प्रत्यय है । उदा - दशकृत्वः । २.१.१७ भवार्थे--( अमुकसे / अमुकस्थानमें ) हुआ इस अर्थमें । २.१.२७ तस्य भावस्त्वतलौ--यह पाणिनिका सूत्र ( ५.१.११९ ) है । २.१.२८ तृनोत्तरादिना-- ( तृना + उत्तरादिना )-कर्तृवाचक शब्द सिद्ध करनेका तृन् प्रत्यय है। २.१.६० उतादेशेन भोकारेण-उतशब्दको ओ ( ओकार ) आदेश होता है (...६७ देखिए )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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