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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
१.३.३२ अतएव ... वेदितव्यम्-स्वप्नादाविल् (१.२.११) सूत्र में स्वप्न इत्यादि शब्दोंमें आद्य अवर्णका इ नित्य होता है ऐसा कहा गया, और वहाँ वेतस शब्दभी कहा गया था । अतः वेतस शब्दमेंभी अका इ: नित्य होता हैं ऐसा निष्पन्न होता है । परंतु प्रस्तुत १.३.३२ सूत्रमें, ‘वेतसमें अ का इ होनेपर' ऐसा कहा है । इस विधानसेही ऐसा जानना है कि यद्यपि वेतस शब्द स्वप्नादिगणमें होता है तथापि उसमें अ का इ विकल्पसे होता है।
१.३.४५ स्वार्थिकलकार-स्वार्थे आनेवाला लकार यानी ल प्रत्यय । पीत शब्दके आगे ल-प्रत्यय आता है (२.१.२६ देखिए )।
१.३.६० ब्यवस्थितविभाषया-विभाषा यानी विकल्प । व्यवस्थित विभाषा यानी विकल्प कहनेवाले नियमके सभी उदाहरणोंको लागू न होनेवाला विकल्प; कुछ उदाहरणोंमें यह विकल्प आवश्यक रीतिसे लागू होता है तो अन्य उदाहरणोंमें उसका। अधिकार नहीं होता।
१.३.६८ तीये अनीये च प्रत्यये-तीय और अनीय प्रत्ययोंमें । तीयद्वि और त्रि संख्यावाचकोंको पूरणार्थमें लगनेवाला तीय प्रत्यय है। उदा - द्वितीय तृतीय । अनीय (अनीयर् ) एक कृत् प्रत्यय हैं। वह धातुमें लगाकर विध्यर्थ कर्मणि धातु.. विशेषण सिद्ध किए जाते हैं। उदा - कृ - करणीय । कृद्विहितयप्रत्यय-धातुसे अन्य शब्द सिद्ध करनेके लिए जो प्रत्यय लगायें जाते हैं उन्हें कृत् कहते हैं । कृत् प्रत्ययोंमेंसे य एक कृतः प्रत्यय है। यह प्रत्यय धातुमें लगाकर वि. क. धा वि. सिद्ध किए जाते हैं । उदा-मा मेय।।
१.३.६९ मयट् प्रत्यय-मयट् (मय ) एक तद्धित प्रत्यय है। एकाध मस्तुका आधिक्य उससे सूचित होता है । उदा - विष विषमय ।।
१.३.१०५ अनुक्त...विकारा:-प्रकृति-शब्दका मूल रूप । प्रत्ययशब्दकी प्रकृतिके प्रायः आगे आनेवाला । लोप -- १.१.२२ देखिए । आगम-मूल शब्दसे कुछभी वर्ण न निकालकर, शब्दके आगे, बीच अथवा अंतमें जब कुछ वर्ग आता है. तब उस वर्णका आगम हुआ ऐसा कहा जाता है। वर्णविकार-शब्दकी सिद्धि होते समय वर्गों में होनेवाला परिवर्तन ।
१:४.७ स्पृहादित्वात्-स्पृहादिगणमें होनेसे । वृक्ष शब्द स्पृहादिगणमें है । स्पृहादिके लिए १.४.२२ देखिए।
१.४.२०. लाक्षणिकस्यापि-व्याकरणके . नियमानुसार होनेवाले शब्द- . काभी । उदा -क्ष्मा - क्षमा-छमा ।
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