Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 319
________________ ३०६ त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण वर्षत्राण, व्याघ्र और सिंह अर्थों में । (७५८) पत्तणं, बाणफल और शरपुंख अयों ( ७५९.) अकंडतलिमो, अपरिणीत और निष्प्रेमन् अर्थो में । (७६०) दअं, उदक और शोक अर्थों में । (७६१) घोलिअं, शिलातल और हठात्कृत अर्थों में । (७६२) जवणं, हय और शशिवदन अर्थोंमें। (७६३) खंजणो, खञ्जरीट और कर्दम अर्यों में । (७६४) तलिमो, गृहोद्धभूमि, वासगृह, कुट्टिम, भ्राष्ट्र और शय्या अर्थोंमें। (७६५) झसो, गम्भीर, तटस्थ, अयशस् और दीर्घ अर्थोंमें । (७६६) वप्पो, भूतगृहीत और बलाधिक अर्थो । (७६७) वल्लरो, मरु, महिष, तरुण, क्षेत्र और अरण्य अोंमें। (७६८) मरालो, सुंदर, अलस और मसृण अर्थों में । (७६९) मम्मक्को, गर्व और उत्कण्ठा अथोंमें। (७७०) विसिडो, विरत और विसंस्थुल अर्थो । (७७१) बलबट्टी, व्यायामसहाया और सखी अर्थो । (७७२) सुज्झसो, रजक और नापित अर्थोमें। (७७३ ) वेइड्रो, तनु, शिथिल, आविद्ध, ऊर्चीकृत और विसंस्थुल अर्थोंमें। (७७४) मलइओ, हत और तीक्ष्ण अर्थो में। (७७५) वडप्पं, लतागृह, सततपवन और हिमवर्ष अर्थोंमें । (७७६) राहो, प्रिय, शोभित, मलिन, सनाथ और विसंस्थुल अर्थोमें। (७७७) वंठो, नि:स्नेह, अकृतविवाह. और भृत्य अोंमें। (७७८) मंथर, कुटिल, बहु और कुसुम्भ अर्थों में । (७७९) लअणं, तनु और कोमल अर्थोमें । (७८०) मम्मणं, अव्यक्तवचस और रोप अर्थाने । (७८१) तुण्हिक्क, मृदु और निश्चल अर्थोंमें । (७८२) ठेणो, स्थासक, चर और चोर अयोंमें। (७८३) तुंबिल्लि, मधुपटल और उलखल अर्थो में। (७८४) पत्थरी, शयन और संहति अर्था । (७८५) णिविटुं, रत्यारभट और समुचित अर्थो में (७८६) दअरो, पिशाच और ईर्ष्या अथोंमें । (७८७) झसुरं, ताम्बूल और अर्थ अोंमें । (७८८) पिंजरो (७८९) पाडलो, हंस और वृष अथोंमें। (७९०) विनोवणअं, क्षोभ, उपधान और विकार अोंमें। (७९१) कुल्लो, असमर्थ, ग्रीवा या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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