Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 320
________________ हिन्दी अनुवाद--अ. ३, पा. ४ विच्छिन्नपुच्छ अर्थों में । (७९२) चुंगुणिआ, मुष्टिद्युत, यूका और समर्थ अोंमें । (७९३) टको, ख्डग, छिन्न, जंघापात, तट और खनित्र अर्थोंमें। (७९४) कोणो, गर्षित और निर्दय अर्थो । (७९५) गेलछो, घण्ढ और पण्डित अर्थोंमें । (७९६) खुलुखी, मिथ्या और अघटमान अर्थोंमें । (७९७) अण्णओ, धूर्त, युवन और देवर अोंमें। (७९८) दुणावेढं, अशक्य और तडाग अर्थों में । (७९९) अरलो (८००) अरलाओ, चिरिका और मशक अर्थो में । (८०१) अच्छं, अत्यर्थ और शीघ्र अथोंमें । (८०२) अलिआ, पितृवसा और कनिष्ठ सगे बंधूकी वधू अोंमें। (८०३) पक्कणं, अतिशोभावत् , भग्न और श्लक्ष्ण अर्थों में । (८०४) पन्भारो, संघात और गिरिगुहा अर्थों में । (८०५) पब्वज्जो, काण्ड, नख और शिशुमृग अर्थोंमें। (८०६) पासण्णो, वेश्मद्वार और तिरश्चीन अर्थोंमें । (८०७) विप्पओ, उन्मत्त और चीरी अर्थोंमें । (८०८) कोप्परो, वर्णसंकर और जालक अर्थों में । (८०९) केड्डो, व्यापन, फेन, श्याल और दुर्बल अर्थोंमें । (८१०) ओहढें, नीवी और अवगुंठन अर्थोंमें, (८११) ओहित्थं, रभस और विषाद अोंमें। (८१२) तोलो (८१३) तड्डो, पिशाच और शलभ अर्थोंमें । (८१४) डसरी, उष्णजल और स्थाली अथोंमें । (८१५) णिउक्कणो, वायस और मूक अर्थोंमें। (८१६) पइरेक्क, एकान्त पृथक् इस अर्थमें और शून्य अर्थमें। (८१७) तुरी, उपकरण, तलिका और शून्य अर्थोंमें । (८१८) वोक्कों, अनिमित्त और तात्पर्यार्थ अर्थो में । (८१९) पसुलो, काकोल और जार अथोंमें। (८२०) किवडी, पार्श्वद्वार और पश्चिमाङ्गण अर्थो में । (८२१) छाआ भ्रमरी । (८२२) सिप्पं, तिलक, और सरके भूषण विशेष अर्थोंमें। (८२३) णलअं, वृतिविवर, कर्द मित, निमित्त और प्रयोजन अोंमें। (८२४) इच्छाउत्तो, योगिनीसुत और ईश्वर अर्थोंमें । (८२५) पेहणअं, उत्सव और भोज्य अथोंमें । (८२६) चारो, इच्छा और बंधन अथोंमें (८२७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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