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हिन्दी अनुवाद-अ.३, पा. ४. आमो हं ।। १०॥ ... अपभ्रंशमें (शब्दों के अन्त्य) अकारके आगे आनेवाले आम् को है ऐसा आदेश होता है ।॥ १० ॥ तणहँ तइज्जी भंगि नवि तें अवडय डि वसन्ति । अह जणु लग्गिवि उत्तरइ अह सह सइँ मनन्ति ।।१०८।।(हे.३३९.१)
(तृणानां तृतीया भगिर्नापि तेनावटतटे वसन्ति ।
अथ जनो लागचा उत्तरति अथ मह स्वयं मजन्ति 11) तृणोंको तीसरी भंगा (दशा, मार्ग) नहीं होती। वे अवटके (आडके) तटपर उगते हैं। उसे पकडकर लोग (आडके पार) उतर जाते हैं या उसके साथ स्वयंही डूब जाते हैं। टो णानुस्वारौ ॥ ११ ॥
अपभ्रंशमें (शब्दों के अन्त्य) अकारके आगे आनेवाले टा-वचनके णः और अनुस्वार होते हैं। उदा.-दइए पवसन्तेण [१०३] ॥ ११ ॥ एं चेदुनः ।। १२ ।।
अपभ्रंश (शब्दों के अन्त्य) इकार और उकार इनके आगे आनेवाले. टा-वचनको एं ऐसा, और (सूत्रमेंसे) चकारके कारण ण और अनुस्वार
हो जाते हैं ।। १२ ।।
एं (का उदाहरण)अग्गिएं उपहउँ होइ जगु वाएं सीअलु ते । जो पुणु अग्गिए सीअला तसु उण्हत्तणु केव॑ ।।१०९।। (=हे.३ ४३.१)
(अग्निना उष्ण भवति जगत् वातेन शीतलं तथा। यः पुनरग्निना शीतलस्तस्य उष्णत्वं क्थम् ॥) .
अग्निसे जगत् उष्ण होता है। वायुसे शीतल होता है। परंतु जो अग्निसेभी शीतल होता है उसे उष्णत्व कैसे ?
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