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हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ४
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डमः सुश् यत्तत्किभ्यः ।। २९ ।।
अपभ्रंश में अकारान्त यत् , तत् , किम् इनके आगे ङस् के स्थान पर सुश् ऐसा आदेश विकल्पसे हो । है । (सुशमें) श् इत् होनेसे पूर्व (पिछला) स्वर दीर्व होना है ॥ २९ ॥
कतु महारउ हलि सहिए निच्छइँ रू सइ जासु । अस्थिहिँ सस्थिहिँ वि ठाउ वि फेडइ तासु ॥१२७॥ (-हे.३५८.१) (कान्तोऽस्माक हे सखि निश्चयेन रुष्यति यस्य । अस्त्रैः शस्त्रैर्हस्तैरपि स्थान मपि स्कोटयति तस्य |)
हे सखी, (मेरा) प्रियकर जिसस निश्चयरूपमें रुष्ट हो जाता है, उसका स्थान वह अस्त्र, शस्त्र (या) हाथोंके द्वारा फोडता है । जीविउँ कासु न वल्लहउँ धणु पुणु कासु न इट्छ । दो पण वि अवसरनिवडई तिणसम गणइ विसिठ्ठ ।।१२८॥ (=हे.३५८.२)
(जीवितं कस्य न वल्लभं धनं पुनः कस्य नेष्टम् । द्वे अप्यवसरनिपतिते तृणसमे गणयति विशिष्टः ॥)
जीवित किसे प्रिय नहीं है ? और धनकी इच्छा किसे नहीं है ? तथापि (विशिष्ट) समय आनेपर विशिष्ट (श्रेष्ठ) व्यक्ति (इन) दोनोको तृणके समान समझता है।
विकरूपपक्षमें-तसु हउँ कलिजुगि [१०७] । इत्यादि । खियां डहे ।। ३०॥
_अपभ्रंशमें स्त्रीलिंगमें रहनेवाले यद्, तद, किम् के आगे डस् को डित् अहे ऐसा आदेश विकल्पसे होता है । उदा. ज हे केरउ,यस्याः संबंधि ॥३०॥ यत्तद 5@ म्वमोः ॥ ३१ ॥
अपभ्रंशमें, सु और अम् (प्रत्यय) आगे होनेपर, यद् और तद् इन (दनों) को एथाक्रम धुं और जे एसे आदेश पर होते हैं ।। ३१ ।।
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