Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 290
________________ २७७ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ४ ओइ अदसः ॥ ३५॥ अपमंशमें अदस् शब्दको, जम् और शस् आगे रहनेपर, ओइ ऐसा आदेश होता है। उदा. ओइ, अमी अमून् वा ॥ ३५ ॥ जइ पुच्छह घर वड्डाहं तो वड्डा घर ओइ ।। विहलिअजणअब्भुद्धरणु कंतु कुडीरइ जोइ ।। १३१ ॥ (=हे.३६४.१) (यदि पृच्छत गृहान् बृहतां तद् बृहन्तो गृहा अमी। विह्नलितजनाभ्युद्धरणं कान्तं कुटीरके पश्य ।) पदि तुम बडोंके घरके बारे में पूच्छते हो तो बड़े घर वे हैं। (परंतु) दुःखित लोगोंका उद्धार करनेवाला (मेरा) प्रियकर कुटीमें (है उसे) देख। इदम आअः ॥ ३६॥ ___ अपभशमें इदम् को, विभक्ति प्रत्यय आगे होनेपर, आअ ऐसा आदेश होता है। उदा.-आउ पुरिसु, अयं पुरुषः ॥ ३६ ॥ आअ. लोअहाँ लोअणइँ जाई सरइँ न भंति । अप्पिएँ दिइ मउलिअहिँ पिएँ दिट्ठइ विअसन्ति ॥ १३२ ॥ (=हे. ३६५.१) (इमानि लोकस्य लोचनानि जाति स्मरन्ति न भ्रान्तिः। अप्रिये दृष्टे मुकुल यन्ति प्रिये दृष्टे विकसन्ति ।) ___ लोगोंकी इन आँखोंको (पूर्व) जनमका स्मरण होता है, (इसमें) शक. नहीं। (क्योंकि) अप्रिय (वस्तु) को देखकर वे संकुचित होती हैं और प्रिय (वस्तु) को देखकर वे विकसित होती हैं। सोसउ म सोसउ च्चिअ उअही वडवाणलस्स किं तेण । जं जलइ जले जलणो आएण वि किं न पज्जत्तं ॥१३३॥ (-हे. ३६५.२) (शुष्यतु मा शुष्यतु एव उदधिर्वडवानलस्य किं तेन । यज्ज्वलति जले ज्वलन अनेनापि किं न पर्याप्तम् ॥) सागर सखे या न सूखे, इससे वडवानलको क्या? अमे जलम जलती रहती है यही (उसका पराक्रम दिखाने के लिए) पर्याप्त नहा क्या ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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