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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
हुमाम्भ्यसोः ।। २२॥
__अपभ्रंशमें स्त्रीलिंगमें रहनेवाली संज्ञाके आगे आनेवाले आम् और भ्यस् इनको हुं ऐसा आदेश होता है। उदा.-वअंसाहुं जइ भटु, वयस्यानां यदि भर्ता, वयस्याभ्यः वा ।। २२ ।। भल्ला हुआ जु मारिआ बहिणि महारा कंतु । लज्जित वअंसिअहुँ जइ भग्गा घरु एन्तु ।। १२१ ।। =हे.३५१.१)
(सम्यग्भूतं यन्मारितो भगिनि मदीयः कान्तः ।
अलज्जिष्यं वयस्याम्यो यदि भग्नो गृहमैष्यत् ॥) हे बहिन, भला हुआ जो मेरा प्रियकर (युद्धमें) मारा गया। (कारण) यदि पराभूत होकर वह घर वापस आता तो (मेरे) वयस्याओंसे मैं लजाई जाती (अथवा-सखियोंके बीच वह शरमा जाता)। उदोतो जश्शसः ।। २३ ।।
अपभ्रंशमें स्त्रीलिंगमें रहनेवाली संज्ञाके आगे आनेवाले जस् और शस् इनको प्रत्येकको उत् और ओत् ऐसे विकार होते हैं। (जस् और शस् का) लोप होता है (देखिए ३.४.१७) इस नियमका प्रस्तुत नियम अपवाद है ॥ २३ ॥
जस (के बारेमें)अंगुलिउ जजरिआओं नहेण [१०१] ॥
शस् (के बारेमें)-- सुंदरसबंगाउ विलासिणीऔं पेच्छन्ताण ।। १२२ ॥ (=हे. ३४८.१)
(सुन्दरसाङ्गयो विलासिनी: प्रेक्षमाणानाम् ।) सर्वांगसुंदर विलासिनियोंको देखनेवालोंका।
उदोतो ऐसा द्विवचन और जश्शसः ऐसा षष्ठी एकवचन ऐसा वचनभेद होने के कारण (यहाँके विकार) क्रमशः नहीं होते (किंतु जस् और शस् इन दोनों में होते हैं।
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