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हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३ हुहुरुधिग्घिगाः शब्दचेष्टानुकृत्योः ।। ५७ ।।
अपभ्रंशमें हुहुरु, इत्यादि शब्द शब्दानुकरण में, और घिग्घिग, इत्यादि शब्द चेष्टानुकर में यथाक्रम प्रयुक्त करें ।। ५७ ।। मइँ जाणिउँ बुड्डीसँ हउँ पेम्पद्र हि हुहरु त्ति । 'णवरि अचिंतिअ संपडिअ विप्पिअनाव इत्ति । ८२ ॥ (= हे. ४२३.१)
(मया ज्ञातं मंश्यामि अहं प्रेमहदे हुहरुत्ति।
केवलमचिन्तिता संपतिता विप्रिय नौई टिति ।) मैंने समझा कि हहुरु शब्द करके मैं प्रेमरूपी सरोवर में डूब जाउँगी। पर बिना सोचेही (अकस्मात् ) वियोगरूपी नौका (मुझे) मिल गई।
आदि शब्दके ग्रहणसे (ऐसेही अन्य शब्दानुकारी शब्द जानें । उदा..) खज्जइ न कसरहिं पिज्जइ नउ छुटेहिं । 'एमइ होइ सुहछडी पिएं दिट्टे नअणे. हिं ।। ९३ ॥ (=हे. ४२३.२)
(खाद्यते न कसर स्कैः पीयते न हण्टैः । एकमेव भवति सुखासिका प्रिये दृष्टे नयनाभ्याम् ।।)
आँखोंसे प्रियकर देखे जानेपर, (वह) कसर कसर करके नहीं खाया जाता है, न छूटोंसे पिया जाता है, तत्र वि सुरु स्थिति रहती है।
इत्यादि शब्दानुकरण (के उदाहरण)। अज्जु वि नाहु महु ज्जि घरि सिद्धत्था वंटेइ । ताउँ जि विरहु गवखेहि मक्कडघि ग्घिउ देइ ।।९।। (=हे. ४२३.३)
(अद्यापि नाथो ममैव गृहे सिद्धार्थान् बन्द ते । तावदेव विरहो गवाक्षेप्यो मर्यटविभीषिका ददाति ॥)
मेरा नाथ जिन प्रतिमाओंको वंदन करता अभी घरमेंही है, (प्रवासपर नहीं गया है), तबतकही विरह झरोखेसे मर्कट-विभीषिका दे रहा है।
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