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हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३ देवहिं विढत्तउँ खाहि वढ [७७] |
अस्पृश्यसंसर्गको विद्याल (आदेश)जे छड्डे विणु रअणनिहि अप्पउँ तडि घल्लन्ति । तह संखहँ विद्यालु पर फुक्किज्जत भमन्ति ।। ८६ ।। (हे.४२२.३) (ये त्यक्त्वा रत्न निधिमात्मानं तटे क्षिपन्ति । तेषां शंखानामस्पृश्यसंसर्गः परं फूक्रियमाणा भ्रमन्ति ।।)
जो सागरको छोडकर अपनेको तटपर फेंक देते हैं, उन शंखोंका अस्पृश्यसंसर्ग है। (वे) केवल (दूसरोंसे) फूंके जाते हुए घूमते हैं।
अद्भुतस्य ढक्करि (आदेश)हिअडा पर बहु बोल्लिअउँ महु अग्गइ सयवार । फुबिसु पिऍ पवसंति हउँ भंडय ढक्करिसार ।। ८७।। (हे. ४२२.११)
(हृदय त्वया बहु उक्तं ममाग्रे शतवारम् । स्फुटिष्यामि प्रिये प्रवसति अहं भण्डक अद्भुतसार ॥)
हे अद्भुतशक्तियुक्त शठ हृदय, तूने मेरे आगे सैंकडों बार बहुल कहा था कि प्रियकर यदि प्रवासपर जायेगा तो मैं झट जाऊँगा।
कौतुकको कोड (आदेश)कुंजरु अन्नहँ तरुवरहं कोण घल्लइ हत्थु । मणु पुणु एक्कहिँ सल्लइहिं जइ पुच्छह परमत्थु ।। ८८ ॥ (=हे.४२२.८)
(कुञ्जरोऽन्येषु तरुवरेषु कौतुकेन क्षिपति हस्तम् । मनः पुनरेकस्यां शल्लक्यां यदि पृच्छत परमार्थम् ॥)
अन्य अच्छे तरुपर हाथी अपनी सूंढ कौतुकसे (खेलके लिए) रगडता है। पर सच पूछो तो उसका मन केवल सल्लकी (वृक्ष) में (लगा रहता) है।
हे सखि इसको हेल्लि (मादेश)
हेल्लि म जंपहि आलु [४८] । त्रि.वि....१७
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