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हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा.२
२२३ ट्वः ठूनत्थूनौ ॥ ६१ ॥
पैशाचीमें, ष करनेपर ष्टा इसप्रकार सिद्ध होनेवाले क्त्वा प्रत्ययके स्थानपर ठून और स्थून ऐसे आदेश प्राप्त होते हैं । उदा.-तठून तत्थून। नठून नत्थून ।। ६१ ॥ शेषं शौरसेनीवत् ।। ६२ ।।
पैशाचीमें जो (होता है ऐसा) कहा है, उसके अतिरिक्त अन्य, शौरसेनीकी तरह (पैशाचीमें) होता है। उदा.-अथ ससरीरो भगवं मकरद्धजो एत्थ परिभमन्तो हुवेय्य । एवंविधाए भगवतीए कथं तापसवेसगहनं कत । ईतिसं अतिहपुरवं महाधनं तळून भअवं अक्किम वरं अच्छसे राअस्स । चंदावलोकातो रचनीए तगतो एव्व तिट्ठो सो आगच्छमानो राजा ॥ ६२ ।। न पायो लुक्कादिच्छल्षट्शम्यन्तसूत्रोक्तम् ॥ ६३ ।।
पैशाचीमें, 'प्रायो लुक्कगचजतदपयवाम्' (१.३.८) इस सूत्रसे 'छलषट्छमीसुधाशावसप्तपणे'(१.३.९०) सूत्रतक जो सूत्र और उनमें कहा हुआ जो कार्य, वह (पैशाचीमें) नहीं होता। उदा.-मकरकेत् । मगधपुत्तवचनं । विजयसेनेन लपित। मतं । पापं । आयुधं । देवरो। इसीप्रकार अन्य सूत्रोंके बारेमें उदाहरण देखें ।। ६३ ।। रो लस्तु चूलिकापैशाच्याम् ॥ ६४ ॥
चलिकापैशाची भाषामें रेफका लकार विकल्पसे होता है। उदा.पनमत पनयप्पकुपितकालीचलनक्कलक्कपतिपंप । तससु नखतप्पनेसु एकातसतनुथल लुत्तं ।। नलो नरो। सलो सरो॥ ६४ ।। गजडबघझढधमां कचटतपखछठथफाल् ।। ६५ ।।
चलिकापैशाचिकमें ग, ज, ड, द, ब, घ, झ, ढ, ध, भ इनके यथाक्रम क, च, ट, त, प, ख, छ, ठ, थ, फ ऐसे लित् (=नित्य) (वर्ण विकार) होते हैं। उदा.-नगरम् नकलं । मार्गणः मक्कनो । मेघः मेखो । घनः खनो।
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