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हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३
२३१ (तिलानां तिलत्वं तावत्परं पावन्न स्नेहा गलन्ति । स्नेहे प्रनष्टे त एव तिलास्तिला भ्रष्ट्वा खला भवन्ति ॥)
जबतक तैल निकाला नहीं है तबतक तिलोंका तिलत्व है। तैलके निकल जानेपर वे तिल, तिल न रहकर खल (खली, दुष्ट) हो जाते हैं।
जामविसमी कज्जगइ जीवहँ मज्झे एइ। तामह अच्छउ इयरु जणु सुयणु वि अंतरु देइ ॥१७॥ (-हे.४०६.३) (यावद् विषमा कार्यगतिर्जीवानां मध्ये एति । तावदास्तामितरो जनः सुजनोऽप्यन्तरं ददाति ॥)
जब जीवोंपर विषम कार्यगति आती है, तब इतर जनकी बातही छोडो (किंतु) सज्जनभी अंतर देता है।
जाम न निवडइ कुंभअडि सीहचवेडचडक । ताम समत्तहँ मयगलहँ पइ पइ वजइ ढक्क ॥ १८ ॥ (=हे. ४.६.१) (यावन्न निपतति कुम्भतटे सिंहचपेटादृढाघातः। तावत्समस्तानां मदकलानां पदे पदे वाद्यते ढक्का ॥)
जबतक सिंहके चपेटेका दृढ प्रहार गंडस्थलपर नहीं पडा, तबतक सभी (मदोन्मत्त) गजोंका ढोल पगपगपर बजता है। डेत्तुलडेवडावियत्कियति च व्यादेवतुपः ॥ १२ ॥
इयत् और कियत् इनके, तथा (सूत्रमेंसे) चकारके कारण थावत् और तावत् इनके बारेमें परिमाण अर्थमें जो क्तुप प्रत्यय कहा है, उनके व्यादिको अर्थात् ककारादि और यकारादि अवयवको एत्तुल, एवड ऐसे डित् आदेश होते हैं। उदा.-एत्तुलो। केत्तुलो । एवडो । केवडो ॥ १२ ॥
जेवडु अंतरु पट्टणगामहं तेवडु अंतर रावणरामहं ॥१९॥ (=हे. ४०७.१). (यावदन्तरं पत्तनग्रामयोः तावदन्तरं रावणरामयोः ।) .
जितना अंतर नगर और गाँव इनमें है, उतनाही अंतर राम और रावण इनमें है।
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