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हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३
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पश्चात्पच्छइ ॥ ४९ ।।
___ अपभ्रंशमें पश्चात् ऐसा अव्यय पच्छइ ऐसा हो जाता है। उदा.पच्छइ होइ विहाण [१२८ ॥ ४९॥ ततस्तदा तो॥ ५० ॥
ततस् (और) तदा ये (अव्यय) तो ऐसे हो जाते हैं। उदा.-तो गदु, ततो गतः तदा गतः वा। जइ भग्गा पारक्कडा तो सहि मण्झु पिएण [७] ॥ ५० ॥ त्वनुसाहावन्यथासौं ॥ ५१ ।।
अन्यथा (और) सर्व ये (शब्द) यथाक्रम अनु (और) साह ऐसे विकल्पसे हो जाते हैं। उदा.-अनु कदु, अन्यथा कृतम् ।। ५१ ।। विरहाणलजालकरालिअउ पहिउ कोवि बुड्डि वि ठिअउ। अनु सिसिरकालि सीअल लहु धूमु कहं तिहु उट्टिअउ।।७०॥(=हे.४१५.१)
(विरहानलज्वालाकरालितः पथिकः कोऽपि निमज्य स्थितः । अन्यथा शिशिरकाले शीतलजलाध्दमः कुत उत्थितः ।।)
विरहाग्निकी ज्वालासे प्रदीप्त कोई पथिक (जलमें) डूबकर स्थित है। अन्यथा शिशिरकालमें शीतल जलसे धूम कहाँसे उठा? विकल्पपक्षमें—अन्नहा। साहु वि लोउ तडप्फडइ [२१] । किं काइंकवणौ ।। ५२ ॥
__ अपभ्रंशमें किम् शब्दको काई और कवण ऐसे आदेश प्राप्त होते. हैं ॥ ५२ ॥ जह सु न आवइ दूइ घर काइँ अहो मुहु तुज्झु । वअणु जु खंडइ तउ सहिए सो पिउ होइ न मज्झु ।।७१।।(=हे.३६७.१)
(यदि स नायाति दूति गृहं किमधो मुखं तव। .. वचनं यः खण्डयति तव सखि स प्रियो न भवति मम 11)
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