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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३ २५१ पश्चात्पच्छइ ॥ ४९ ।। ___ अपभ्रंशमें पश्चात् ऐसा अव्यय पच्छइ ऐसा हो जाता है। उदा.पच्छइ होइ विहाण [१२८ ॥ ४९॥ ततस्तदा तो॥ ५० ॥ ततस् (और) तदा ये (अव्यय) तो ऐसे हो जाते हैं। उदा.-तो गदु, ततो गतः तदा गतः वा। जइ भग्गा पारक्कडा तो सहि मण्झु पिएण [७] ॥ ५० ॥ त्वनुसाहावन्यथासौं ॥ ५१ ।। अन्यथा (और) सर्व ये (शब्द) यथाक्रम अनु (और) साह ऐसे विकल्पसे हो जाते हैं। उदा.-अनु कदु, अन्यथा कृतम् ।। ५१ ।। विरहाणलजालकरालिअउ पहिउ कोवि बुड्डि वि ठिअउ। अनु सिसिरकालि सीअल लहु धूमु कहं तिहु उट्टिअउ।।७०॥(=हे.४१५.१) (विरहानलज्वालाकरालितः पथिकः कोऽपि निमज्य स्थितः । अन्यथा शिशिरकाले शीतलजलाध्दमः कुत उत्थितः ।।) विरहाग्निकी ज्वालासे प्रदीप्त कोई पथिक (जलमें) डूबकर स्थित है। अन्यथा शिशिरकालमें शीतल जलसे धूम कहाँसे उठा? विकल्पपक्षमें—अन्नहा। साहु वि लोउ तडप्फडइ [२१] । किं काइंकवणौ ।। ५२ ॥ __ अपभ्रंशमें किम् शब्दको काई और कवण ऐसे आदेश प्राप्त होते. हैं ॥ ५२ ॥ जह सु न आवइ दूइ घर काइँ अहो मुहु तुज्झु । वअणु जु खंडइ तउ सहिए सो पिउ होइ न मज्झु ।।७१।।(=हे.३६७.१) (यदि स नायाति दूति गृहं किमधो मुखं तव। .. वचनं यः खण्डयति तव सखि स प्रियो न भवति मम 11) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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