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हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा. ३
गुणोंसे संपत्ति नहीं मिलती, कीर्ति मिलती है। नसीबसे (ललाटपर) लिखे हुए फल (लोग) भोगते हैं। सिंह एक कौडीभी नहीं प्राप्त करता, पर हाथी लाखों (रुपयों) से खरीदे जाते हैं। एकसि सीलकलंकिअहं देज्जहिँ पच्छित्ताई। जो पुणु खंडइ अणुदिअहु त पच्छित्ते काई ॥४६।। (=हे. ४२८.१
(एकश: शीलकलंकितानां दीयन्ते प्रायश्चित्तानि । यः पुनः खण्डयत्यनुदिवसं तस्य प्रायश्चित्तेन किम् ॥)
एकबार शील कलंकित होनेवालोंको प्रायश्चित्त दिये जाते हैं। पर जो प्रतिदिन (शील) खंडित करता है उसे प्रायश्चित (देने)का क्य उपयोग ? अडडडुल्लाः स्वार्थिककलुक् च ॥ २९॥
अपभ्रंशमें संज्ञाके आगे अ ऐसा, तथा अड और उल्ल ऐसे ये डिद प्रत्यय होते हैं, और उनके सानिध्यसे स्वार्थिक क-प्रत्ययका लोप होता है। उदा.-बलउ बलडु बलल्लु, बलम् ॥ २९॥
विरहाणलजालकरालिअउ पहिउ पंथि जं दिवउ । तं मेल्लवि सवहिँ पंथिअहिँ सो जि किअउ अग्गिट्ठउ ।।४७॥
(=हे. ४२९.१) (विरहानलज्वालाकरालितः पथिकः पथि यदा दृष्टः । तदा मिलित्वा सर्वैः पथिकैः स एव कृतोऽग्निष्ठः ।।)
जब विरहाग्निकी ज्वालासे जलाभुना हुआ पथिक मार्गपर दिखाई पडा, तब सब पथिकोंने मिलकर उसको अग्निपर रख दिया (कारण वह मर गया था)।
महु कतहु बे दोसडा हेल्लि म जंपहि आलु । देंतहाँ हउँ पर उव्वरिअ जुझंतहा करवाल ।।४८।। (=हे. ३७९.१) त्रि.प्रा,व्या....१६
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