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हिन्दी अनुवाद-अ. २, पा. ४
१७हे. छिप्पः स्पृशतेः ॥ ८८ ॥
भावकर्मणिमें स्पृश् (स्पृशति) धातुको छिप्प ऐसा आदेश विकल्पसे होता है, और यक् का लोप होता है। उदा.-छिप्पइ। विकल्पपक्षमेंछिविज्जइ ।। ८८ ॥ दीसल् दृशेः ।। ८९ ॥
भावकर्मणिमें दृश् (दृशि) धातुको लित् (=नित्य) दीस ऐसा आदेश होता है, और यक् का लोप होता है। उदा.-दीसइ ।। ८९ ।। वचेरुश्चः ॥ ९० ॥
__ भावकर्मणिमें वच् (वचि) धातुको उच्च ऐसा आदेश विकल्पसे होता है, और यक का लोप होता है। उदा.-उञ्चइ। विकल्पपक्षमें-बइज्जइ ॥ ९० ॥ ईअइज्जौ यक् ।। ९१ ।।
अपवादके निमित्तसे यह नियम कहा है। भावकर्मणिमें कहा हुआ जो यक् प्रत्यय है, उसको ईअ और इज्ज ऐसे आदेश होते हैं। उदा.हसीअइ हसिज्जइ। हसीअन्तो हसिज्जन्तो। हसीअमाणो हसिज्जमाणो । पढीअइ पढिज्जइ। होईअइ होइज्जइ। बहुलका अधिकार होनेसे, क्वचित् यक् प्रत्ययभी विकल्पसे होता है। उदा.-तेण लहिज्ज । तेण लहिज्जेज्ज । मर णवेज्ज । मए णविजेज। तेण अच्छिज्ज | तेण अच्छिज्जेज्ज । तेण अच्छीअइ ॥ ९१ ॥ स्पृहदूझोः सिहौ णिचोः ।। ९२ ।।
णिच् प्रत्ययान्त (प्रेरणार्थी प्रत्ययान्त) स्पृहू और दू (दूध) धातुओंको सिह और दूम ऐसे आदेश यथाक्रम होते हैं। उदा.-सिहइ । दूमइ ।।९।।
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