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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
इअदूणौ क्त्वः ।।१०॥
शौरसेनीमें क्त्वा प्रत्ययको इअ और दूण ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.-भविअ होदूण | पढिअ पढिदूण । रमिअ रमिदूण । होता, भोत्ता, पढित्ता, रन्ता ये रूप सिद्धावस्थाके रूपोंमें व का लोप होकर, हुए हैं ॥१०॥ कुगमोर्डदुअः ॥ ११ ॥
कृ (कृञ् ) और गम् धातुओं के आगे क्त्वा प्रत्ययको डित् अदुअ ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-कदुअ । गदुअ। (विकल्पपक्षमें)करिअ । गमिअ । करिदूण | गमिदूण ॥ ११ ॥ इदानीमो ल्दाणिं ।। १२ ।।
शौरसेनीमें इदानीम् के स्थानपर दाणिं ऐसा लित् (=नित्य) आदेश होता है। (सूत्रमें से दाणिं में) ल् इत् होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-अणन्दरकरणिज्जं दाणिं आणवेदु अय्यो। 'तद्व्यत्ययश्च' (३.४. ६९) सूत्रानुसार, प्राकृतमभी (दाणिं आदेश दिखाई देता है)। उदा.अण्णं दाणिं होइ ।। १२ ।। तस्मात्ता ।। १३॥
शौरसेनीमें तस्मात् शब्दको ता ऐसा आदेश प्राप्त होता है। उदा.ता जाव पविसामि | ता अलं एदिणा माणेण ॥ १३ ॥ णं नन्वर्थे ॥ १४ ॥
शौरसेनीमें ननु के अर्थ के लिए णं ऐसा निपात प्रयुक्त करें। उदा.ण अफलोदअं। णं अय्य मिस्सेहिं पुढम एव आणतं। णं भवं मे अग्गदो चलदि ॥१४॥ अम्महे हर्षे ॥१५॥
शौरसेनीमें अम्महे ऐसा निपात हर्ष दिखाते समय प्रयुक्त करें। उदा.-अम्महे एदार उम्मिलाए सुपरिषडिदो भवं ॥ १५॥
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