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तूरः शतृतिङि ॥ १५० ॥
शतृ प्रत्यय और तिङ् प्रत्यय आगे होनेपर, स्वरति धातुको तूर ऐसा आदेश होता है | उदा. - तुरन्तो । तूरइ ॥ १५० ॥ पर्यसः पल्लपल्लो पल्हत्था: ।। १५१ ।
'अक्षेप' से अस् धातुके पीछे परि (उपसर्ग) होनेपर, उस धातुको पल, लोह, पलत्थ ऐसे तीन आदेश प्राप्त होते हैं। उदा. - पलाइ । पल्लोइ पहत्थइ ॥ १५१ ॥
त्रिविक्रम प्राकृत-व्याकरण
मृदनातेर्मल परिहट्टखुड्डपन्नाडचड्डमड्डमडाः || १५२ ॥
मृद् (मृद्नाति) धातुको मल, परिहट्ट, खुड्ड, पन्नाड, चड्डु, मड्ड, मड ऐसे सात आदेश होते हैं । उदा. मलइ । परिहइ । खुड्डइ | पन्नाडइ । चड्डइ | मड्डुइ | मडइ ॥ १५२ ॥
शिगे अक्खणिअच्छा व अच्छचज्जाव अज्झपुलअपुलो अदेवखावअक्खपेच्छा व आसपासणिअ मच्चत्रा वक्खान् ॥ १५३ ॥
'दृशिर प्रेक्षणे' में से दृश् धातुको ओअक्ख, णि अच्छ, अव अच्छ, चज्ज, अत्रअज्झ, पुल, पुलोअ, देख, अवअक्ख, पेच्छ, अवआस, पास, णिभ सन्नव, अवक्ल ऐसे पंद्रह आदेश प्राप्त होते हैं | उदा. ओअक्खइ । णिअच्छइ अत्रअच्छइ । चज्जइ । अवअज्झइ । पुत्रअ । पुलोअइ | देक्खइ । अवअक्खइ पेच्छइ । अत्रआसइ | पासइ । णिअइ | सच्चवइ । अवअक्खइ । पर णिज्झअइ रूप मात्र दर्शन अर्थ में होनेवाले नि (उपसर्ग) पूर्वक ध्यायति धातुका है ।। १५३ ॥ झरपज्झरपच्चइखिरणिड्डु अणिब्बलाः क्षरेः ।। १५४ ।।
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क्षर् (क्षरते :) धातुको झर, पज्झर, पच्चड्डु, खिर, णिड्डुअ और णिब्बल ऐसे छः आदेश होते हैं | उदा.- झरइ | पज्झरइ । पच्चड्डुइ । खिग्इ | णिड्डूाइ णिब्बलइ ॥ १५४ ॥
कासेरवाद्वासः ।। १५५ ।।
अव (उपसर्ग) के अगले कास् (कासेः) धातुको वास ऐसा आदेश होता | उदा. - ओवासइ ॥ १५९ ॥
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