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हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. ४
निरप्पथक्कठाचिहाः ॥ १२७ ॥
(इस सूत्रमें २.४.१२६ से) स्थः पदकी अनुवृत्ति है। स्था (तिष्ठति) धातुको निरप्प, थक्क, ठा, चिट्ठा ऐसे चार आदेश होते हैं। उदा.-निरप्पड़। (न का) ण होनेर-णिरप्पइ । थक्कइ । ठाइ । चिट्ठाइ । ठाणं। पट्टाओ।उट्ठ ओ। पट्टाविओ। उहाविओ । चिट्ठिऊण । बहुलका अधिकार होनेसे, थिों (ऐसा भी रूप होता है)। थाणं । पत्थिओ । उत्थिओ । थाऊण ।। १२७ ।। विस्मरः पम्हसवीसरौ ॥ १२८ ॥
विस्मृ (विस्मरति) धातुको पम्हस, वीसर ऐसे आदेश होते हैं। उदा.पम्हसइ । वीसाइ । विकल्पपक्षमें-विग्हरइ । (यह रूप) इमम...'(१.४.६७) सूत्रानुसार स्म का म्ह होकर, और 'अर उः (२.४.६६) सूत्रानुसार ऋषर्णको अर् आदेश होकर सिद्ध होगा ॥ १२८ ॥ कृपौ णिजवहः ॥ १२९॥
'कृप कृपायाम्भेसे कृग् धातुका अवह ऐसा णिच्-प्रत्ययान्त : आदेश होता है। उदा.-अवहावेइ, कृपां करोति ऐसा अर्थ॥ ११९॥ जाणमुणौ ज्ञः ॥ १३०॥
'ज्ञा अवबोधने मेंसे ज्ञा धातुको जाण,मुण ऐसे आदेश होते हैं। उदा.जाणइ । मुणड । बहुलका अधिकार हनेसे, कचित् विकल्प होता है। उदा.जाणिअं मुणि णाअं, ज्ञातम् । जाणिऊण णाऊण, ज्ञात्वा । जाणणं णाणं, ज्ञानम् । परंतु मगइ यह रूप मात्र मन्यते धातुसे है ॥ १३०॥ धो दह श्रदः ॥ १३१ ॥
'डुधाञ् धारणपोषग्योः से धा धातु अत् अव्ययके आगे होनेपर, उसको दह ऐसा आदेश होता है। उदा.-सदहइ । सद्दहमाणो जीवों । सद्दहणं होइ सम्मत्तं ॥ १३१॥ स्पृशिश्छिवालुक्खफरिसफासफंसालिहच्छिहान् ।। १३२ ।। ...... 'स्पृश स्पर्शने' मेंसे स्पृश् (स्पृशति) धातुको छिव, आलुक्ख, फरिस, फास, फंस, आलिह, छिह ऐसे सात आदेश होते हैं। उदा.-छिवइ । आलुक्खइ । फरिमइ । फासइ । फसइ । आलिहई। छिहइः ॥ १३२ ॥ १.
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