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हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. ४ सांनिध्यसे यक् का लोप होता है । उदा.-बज्झइ बन्धिज्जइ । भविष्यकाल मेंबञ्झिहिइ बंधिजहिइ ।। ७८ ॥ रुध उपसमनोः ॥ ७९॥
उप, सम् और अनु इन उपसगाके आगे रुन्ध धातुके अन्त्य वर्णका भावकर्मणिमें झर् विकल्पसे होता है, और उसके सानिध्यसे यक् का लोप होता है। उदा.-उवरज्झइ । संरुज्झइ । अणुरुज्झइ। विकल्पपक्षमें-उवरु-- न्धिज्जइ। संरुन्धिज्जइ। अणुरुन्धिजइ। भविष्य कालमें-उवरुज्झहिइ । संरुज्झहिइ। इत्यादि ।। ७९ ।। द्वे गमिगे ।। ८० ॥
गम् , इत्यादि धातुओंमें अन्त्य वर्णोंके भावकर्मणिमें दो रूप होते हैं और उनके सांनिध्यसे यक् प्रत्ययका लोप होता है। उदा.-गम् गम्मइ गमिज्जइ। हस्.हस्सइ हसिज्जइ। भण-भण्णइ भणिज्जइ। लुभ् लुब्भइ. लुभिज्जइ। कथ्-कत्थइ कहिज्जइ। कुप्-कु.प्पइ कुविज्जइ। भुज-भुज्जइ भुजिज्जइ। रुद-रुबइ रुविजइ। 'नमोदिजरुदाम्' (२.४.४८) इस सूत्रानुसार जिसमें वकारका आदेश किया गया है वह रुद् धातु यहाँ लिया है। भविष्यकालमें-गम्मिहिइ गष्ठिज्ज हिइ, इत्यादि ।। ८० ॥ ईर हृकृतजाम् ॥ ८१ ।।
भावकर्मणिमें हृ (हन), कृ (कृञ् ), त और ज़ इन धातुओंके अन्त्य वर्णका ईर ऐसा आदेश विकल्पसे होता है, और उसके सानिध्यसे यक् का लोप होता है। उदा.-हीरइ हरिज्जइ। कीरइ करिज्जइ। तीरइ तरिज्जइ। जीरइ जरिज्जइ ॥ ।। ८१ ॥ अर्जेविढप्पः ।। ८२ ॥ ..(यहाँ) 'अन्त्यस्य' पदकी निवृत्ति हुई। भावकर्मणिमें अर्जु धातुको विढप्प. ऐसा आदेश विकल्पसे होता है, और उसके सानिध्यसे यक् का
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