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त्रिविक्रम - प्राकृत-व्याकरण
कारण यक् का लोप होता है । चिम्मइ । विकल्प पक्ष में चिव्वइ चिणिञ्जइ भविष्यकाल में चिम्महिइ, चिव्यहि, चिणिज्जहि (इत्यादि) ।। ७४ ॥ अन्त्यस्य हनखनोः ॥ ७५ ॥
(इस सूत्र में २.४.७४ से) मर् पद (अध्याहृत) है । भावकर्मणि हन् और खन् धातुओंके अन्त्य वर्णको रित् म-आगम विकल्पसे होता है, और उसके सांनिध्यके कारण यक् का लोप होता है । उदा.- हम्मइ हणिज्जइ । खम्मइ खणिज्जइ । भविष्यकाल में- हम्मिहिइ हणिज्ज हिइ, खम्मिहिइ खणिज्जहिइ । बहुलका अधिकार होनेसे, हन् धातुके कर्तरि रूप में भी (म् का आगम रित् होता है ) । उदा. - हम्मर (यानी ) हन्ति ऐसा अर्थ । कचित् (म का आगम नहीं होता) । उदा . - हन्तव्वं । हन्तूण । हओ
|
॥ ७५ ॥
दुहलिवहरुहां भरत उच्च ।। ७६ ।। दुइ, लिहू, बहू, रुह धातुओं के अन्त्य वर्णका रितू भकार विकल्प से होता है, और उसके सांनिध्य के कारण यक् का टोप होता है। बहु धातुमें अ का उकार होता है | उदा. दुब्नइ दुहिज्जइ । लिम्भइलिजिइ । वुम्भइ हिज्जइ । रुभइ रुहिज्जइ । भविष्यकाल में दु भिहिइ, दुहिज्जह, इत्यादि ।। ७६ ।।
दहेर्झर् ॥ ७७ ॥
(इस सूत्र में २.४.७५ से ) अन्त्यस्य पदकी अनुवृत्ति है । भावकर्मणिमें दहू धातुमेंसे अन्त्य वर्णका रितू झकार विकल्पसे होता है, और उसके सांनिध्यसे यक् का लोप होता है । उदा. - उज्झइ डहिज्जइ । भविष्यकाल में - इज्झि हिइ डहिज्जहिइ || ७७
॥
बन्धो न्धः ।। ७८ ॥
(इस सूत्र में २.४.७७ से) झर् पदकी अनुवृत्ति है । न्ध का भात्रकर्मणिमें झर् ऐसा आदेश विकल्पसे होता है,
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बन्धू धातुके और उसके
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