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हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. ३
ल् इत् होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता । उदा.-वडवामुखम् वलामुहं । गरुडः गरुलो । तडागर तलाभ। क्रीडति कीलइ । असंयुक्त होनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं । उदा.-कुटुं कुड्यम् । अनादि रहनेपरही (यह वर्णीतर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-डमरुओ डमरुकः । स्वरके आगे होनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-तोंडं तुण्डम् । उडु, इत्यादि शब्दोंको छोडकर (अनुडुगे), ऐसा क्यों कहा है । (कारण उड्डु, इत्यादि शब्दोंमें यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-उडु । निबिडं । गउडो। नाडी। पीडिअं । नीडं । इत्यादि ॥ ३० ॥ टो डः ॥ ३१ ॥
असंयुक्त (अस्तोः), अनादि (अखोः), स्वरके आगे रहनेवाले टकारका ड होता है। उदा.-भटः भडो। नटः णडो । घटः घडो। घटते घडइ। असंयुक्त होनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.खग खट्वाङ्गम् । अनादि रहनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं ।) उदा.-टक्को (इस नामका देश)। स्वरके आगे रहनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-घंटा । कचित् (ऐसा वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-अटति अटइ ॥ ३१ ॥ वेतस इति तोः ॥ ३२ ॥
(इस सूत्रमें १.३.३१ से) डः पदकी अनुवृत्ति है। वेतस शब्दमें, (तमेंसे) अ का इ होनेपर, तु का यानी त-वर्गका ड होता है। उदा.-वेडिसो। (अ का) इ होनेपर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण इ न हो तो यह वर्णान्तर नहीं होता)। उदा.-वेअसो। अतएव ऐसा विधान होनेसे, स्वप्न, इत्यादि शब्दसमूहमें आनेवाले वेतस शब्दमें (देखिए १.२.११) अ का इ विकल्पसे होता है, ऐसा जानना है ।। ३२ ॥ प्रतिगेऽप्रतीपगे ॥ ३३ ॥
(इस सूत्रमें १.३.३२ से)तोः पदकी अनुवृत्ति है। प्रति, इत्यादि शब्दोंमें तु का यानी त-वर्गका, प्रतीप, इत्यादि शब्दोंको छोडकर, ड होता
त्रि.प्रा.व्या....४
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