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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण र्यः सौकुमार्यपर्यस्तपर्याणे ॥ ५५ ॥
(सौकुमार्य, पर्यस्त, पर्याण) इन शब्दोंमें ये का ल होता है। उदा.सौकुमार्यम् सोअमलं । पर्यस्तम् पलट्ट । पर्याणम् पल्लाणं । पल्लंको यह वर्णान्तर मात्र पल्यंक शब्दका है ॥ ५५ ॥ अररीअरिज्जमाश्चर्ये ॥ ५६ ॥
(इस सत्र में १.४.५५ से) यः पदकी अनुवृत्ति है। आश्चर्य शब्दमें र्य को अर, रीअ, रिज्ज ऐसे तीन आदेश होते हैं। उदा.-अच्छअरं अच्छी अच्छरिजं ॥ ५६ ॥ डेरो ब्रह्मचर्यसौन्दर्ये च ।। ५७ ॥
ब्रह्मचर्य और सौन्दर्य शब्दोंमें, तथा (सूत्रमेंसे) चकारके कारण आश्चर्य शब्दमें,र्य को डित् एर ऐसा आदेश होता है। उदा.-बम्हचेरं । संदेरं । अच्छे । यहाँ (प्रत्ययमेंस) डित्त्वके कारण टि का लोप हुआ है। (ये शब्द) चौर्यसम (देखिए १.४.१०.) होनेसे, (स्वरभक्ति होकर अगले रूप भी सिद्ध होते हैं ।) उदा.-बम्हचरिअं । सुंदरिअं । अच्छरिअं ॥ ५७ ॥ वा पर्यन्ते ॥ ५८ ॥
पर्यन्त शब्दमें यं को डित् एर (डेर) (ऐसा आदेश) विकल्पसे होता है। उदा.-पेरन्तो पज्जन्तो॥ १८ ॥ धैर्य रः ॥ ५९॥
___ (इस सूत्रमें १.४.५८ से) वा पदकी अनुवृत्ति है। धैर्य शब्दमें य का र विकल्पसे होता है । उदा.-धीर धिज्जं ॥ ५९ ॥ तूर्यदशाहशौण्डीर्ये ॥ ६ ॥
(तूर्य, दशाह, शौण्डीर्य) इन शब्दोंमें स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका र होता है। यह नियम (१.४.६९ से) पृथक् कहा जानेसे, (यहाँका र) नित्य होता है । उदा.-तूरं । दसारो। सोण्डीरं ॥ ६० ॥ बाष्पे होऽश्रुणि।। ६१ ॥ .. अश्रुवाचक बाष्प शब्दमें स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका ह होता है। उदा.-बाहो (यानी) नेत्रजल (अश्रु) । अश्रुवाचक (बाष्प शब्दमें), ऐसा क्यों
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