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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
इल और इक आये और उ का ओ होगया। (८८) अट्टण्णो आतज्ञः। आर्त जानता है वह । (८९) गंजोलो । परिभव अर्थमें होनेवाले देश्य 'गंज' धातुके आगे डोल (डित् ओल) प्रत्यय आगया। (९०) बंदिणो बन्दी। यहाँ स्वार्थे | आगया । (९१) तत्तिल्लो तच्छील यानी तत्पर । तत्ती यानी तत्परता (२.१. ३० के नीचे (७०) तत्ती शब्द देखिए), उसके आगे अस्ति अर्थमें ल आया (और उस) ल का द्वित्व होगया। (९२) ऊसुम्भिअं रुद्धगलरोदनम् (रुद्ध गलेसे रोना)। उद् के आगे होनेवाले सुम्भ के आगे कहे हुए अर्थमें डिक (डित् इक) प्रत्यय आगया। (९३)णि उक्को तूष्णीकः मूक । निर्मुक्तः। म का लोप हुआ, आर देवादिपाठमें होनेसे द्वित्व होगया। (९४) बहलो अपस्मारः । ब्रह्मन् शब्दके आगे कहे हुए अर्थमें ल आया। (९५) ठाणिज्जं गौरवम् । स्थान शब्दके आगे कहे हुए अर्थमें डिज्ज (डित् इज्ज) प्रत्यय आगया । (९६) उवउजो उपकारी । उपकृ धातुको डुज्ज (डित् उज्ज) प्रत्यय लग गया। (९७) एकला प्रबलः। एक शब्दके आगे कहे हुए अर्थमें ल आया । (९८) माउ सआ माउच्छा मातृष्वसा (यानी) मौसी। मातृ शब्दके आगे आनेवाले स्वसृ शब्दको सिआ और च्छ ऐसे (आदेश) हो गये। (९९) महल्लो मुखरः (यानी) बहुत बोलनेवाला । महत् शब्दके आगे डल्ल (हित् अल्ल) प्रत्यय आगया । (१००) कुच्छिमई गर्भवती। कुक्षि के आगे अस्ति अर्थमें मई प्रत्यय आय।। (१०१) रिछोली ऋक्षालिः नक्षत्रमाला, उसकी तरह होनेसे रिंछोली। ऋ के बाद अनुस्वार होगया । (१०२) धोरणी पंक्तिः। धारावत् होनेसे धोरणी। आ का ओ होगया, और उपमा अर्थमें डणी (डित् अणी) प्रत्यय आगया। (१०३) पडमा दूष्यग्टम् । पट शब्दके आगे अस्ति अर्थमें मा प्रत्यय आया । (१०४) जुअणो युवा । यहाँ स्वार्थे ण आया है। (१०५) करमरी हटहना स्त्री, बन्दी (बलात् हरण की हुई स्त्री, बंदी)। करेण मृद्यमानात् आकृष्यते' इस अर्थमें कर अपद होनेवाले मृद् धातुके आगे डरी (डितू अरी) प्रत्यय आया । (१०६) दड्ढाली दवम दवाग्निमार्ग। दग्ध के आगे डाली (डित् आली) प्रत्यय आगया। (१०७) कुडंगो कुडओ लतागृह | कुटी शब्दके आगे कहे हुए अर्थमे डंग और डक (डिन अंग और अक) प्रत्यय आ गये। (१०८) कारिम कृत्रिम | कृ धातुके आगे डारिम (डित आरिम) प्रत्यय आया।
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