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चतुर्थः पादः
लटस्तिप्ताविजेच् ।। १ ॥
लट् यानी वर्तमानकाल; तत्संबंधी प्रथमपुरुषके एकवचन में होनेवाले, परस्मैपद और आत्मनेपद में ऐसे कहे, जो तिप् और त ऐसे ये (दो प्रत्यय होते हैं), उनको प्रत्येकको इच् और एच् ऐसे ये (आदेश) होते हैं । ( इच् और एच में से दो ) चकार 'हुर चिति' (३.१.५) सूत्रानुसार, विशेषणार्थ में होते हैं । उदा. हसइ हसए । रमइ रमए ।। १ ।
सिष्यास्सेसि ॥ २ ॥
( इस सूत्र में २.४. १ से) लटः पदकी अनुवृत्ति है । परस्मैपद और आत्मनेपद इनमें से मध्यम पुरुषके एकवचन में होनेवाले जो हिपू और थास् ये (दो प्रत्यय होते हैं) उनको प्रत्येकको से और मि ऐसे थे (दो आदेश) विकल्पसे होते हैं । उदा. -हससे हससि । रम्से रमसि ॥ २ ॥
मिर्मिविटी ।। ३ ।।
वर्तमानकालके परस्मैपद और आत्मनेपद इनके उत्तमपुरुष के एकवचन में होनेवाले जो म्पूि और इट ऐसे (दो प्रत्यय होते हैं), उन्को प्रत्येकको मि होता है । उदा. हसामि । रमामि । और बहुलका अधिकार होनेसे, मि और इट् इनके आदेशके रूपमें अ नेवाले मि में इ का लोप होता है | उदा.- बहु वण्णिउं न सक्के, बहु वर्णितुं न शक्नोमि । नमर, न म्रिये ॥ ३ ॥
झिझौ न्ति न्ते इरे ॥ ४ ॥
वर्तमान काल में प्रथमपुरुषके दो प्रत्यय हैं ) उनको प्रत्येक को हैं | उदा. - हसन्ति हसन्ते ।
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बहुवचन में होनेवाले झि और झ थे (जो न्ति, ते, इरे ऐसे तीन आदेश होते रमन्ति रमन्ते । हस्जिन्ति इतेि । १५१
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