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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
रमिज्जन्ति रमिज्जन्ते। गज्जन्ते खे मेहा। उप्पज्जन्ते कइ हिअअसाअरे कव्वरअणाई। दोणि वि ण पहुप्पिरे बाहू, द्वावपि न प्रभवतः बाहू । कचित् एकवचनमेंभी इरे (प्रत्यय होता है)। उदा.-सूसइरे ताण तारिसो कण्ठो, शुष्यति तासां तादृशः कण्ठः ।। ४ ।। थध्वमित्थाहचौ ॥५॥
वर्तमानकालमें मध्यमपुरुषके बहुवचनमें होनेवाले थ और ध्वम् ऐसे ये (जो दो प्रत्यय हैं), उनको प्रत्येकको, इत्था और हचू ऐसे आदेश प्राप्त होते है। उदा.-हसित्था हसह । रमित्था रमह । बहुलका अधिकार होनेसे इतरत्रभी (यानी अन्य पुरुषोंमेभी) इत्था (आदेश दिखाई देता है)। उदा.-जं जं ते रोइत्था, यद्यत्ते रोचते । हच मेंसे चकार 'इहहचोः' (३.२. ५) सूत्रानुसार विशेषणार्थमें है ॥ ५ ॥
मो म मु मस्महिङ् ॥ ६॥
वर्तमानकालमें उतमपुरुपके बहुवचनमें होनेवाले मस् और महिङ् ऐसे थे (जो दो प्रत्यय हैं), उनको प्रत्येकको मो, म, मु ऐसे तीन आदेश प्राप्त होते हैं। उदा.-हसामो हसाम हसामु । रमामो रमाम रमामु
अत एवैच् से ।। ७ ॥ ___ वर्तमानकालमें प्रथमपुरुषके एकवचनमें जो एच् (प्रत्यय) और मध्यमपुरुषके एकवचनमें कहा हुआ जो से (प्रत्यय),वे दोनों अकारान्त (धातुओं) के आगेही आते हैं, अन्य स्वरान्त धातुओंके आगे नहीं आते। उदा.हसए हससे। तुवरए तुवरसे | करए करसे। अकारान्तके आगे आते हैं, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण अन्य स्वरान्त धातुओंके आगे ये प्रत्यय नहीं भाते)। उदा.-ठाइ ठासि। वसुआइ वरआसि । होइ होसि ।। ७ ।।
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