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त्रिविक्रम-प्राकृत-ध्याकरण उदा.-हस हसिज्जहि हसिज्जसु हसिज्जे। विकल्पपक्षमें-हससु । अकारके आगे, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण इतर स्वरोंके आगे ऐसा नहीं होता)। उदा.-होसु ठाहि ॥ ३८ ॥ लड्लटोश्व जर्जारौ ।। ३९ ॥
___ लट् और लृट् इनमें यानी वर्तमानकाल तथा भविष्यकाल इनमें तथा (सूत्रमेंसे) चकारके कारण विधि, इत्यादिमें कहे हुए प्रत्ययोंके स्थानपर ज और जा ऐसे ये रित् (प्रत्यय) विकल्पसे होते हैं। (सूत्रमेंसे जर्जरी में) र् इत् होनेसे, (ज का) द्विव (=ज) होता है। उदा.-लट्हसेज्ज हसेज्जा। पढेज्ज पढेज्जा। सुणेज सुणेज्जा। विकल्पपक्षमें--- हसइ । पढइ । सुणइ । लट्-पढेज्ज पढेज्जा । सुणेज्ज सुणेज्जा। विकल्पपक्षमेंपढिहिइ । सुणिहिइ । विधि, इत्यादिमें-हसेज्ज हसेउजा, हसतु हसेत् वा । विकल्पपक्षमें-हसउ। इसीतरह सब पुरुषों में और सब वचनोंमें अन्य लकारों के बारे में भी होता है (ऐसा कोई) कहते हैं। उदा-होज्ज होज्जा,भवति भवेत् भवतु अभवत् अभूत् बभूव भूयात् भविता भविष्यति अभविष्यत् ऐसा अर्थ (होता है) ॥ ३९ ॥
मध्ये चाजन्तात् ॥ ४० ॥
(इस सूत्रमें २.४.३९ से) जर्जारौ पदकी अनुवृत्ति है । लट्, लूटू और विधि, इत्यादिमें, अजन्त यानी स्वरान्त धातुके बारेमें, प्रकृति और प्रत्यय इनके बीचमें, तथा (सूत्रमेंसे) चकारके कारण प्रत्ययोंके स्थानपर, जर और जार् ये दो आदेश होते हैं। उदा.-होज्जइ होज्जाइ। होज्ज होजा। होज्जहिमि होज्जा हिमि। विधि, इत्यादिमें-होजइ होज्जाइ । होज्ज होज्जा। भवतु भवेत् वा। विकल्पपक्षमें-होइ। स्वरान्त धातुके बारेमें, ऐसा क्यों कहा है ! (कारण व्यंजनान्त धातुके बारेमें ऐसा नहीं होता)। उदा.-हसेज्ज हसेज्जा। तुबरिज तुव रिज्जा ।। ४०।।
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