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हिन्दी अनुवाद-अ. २, पा. २
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दिर्दोत्तोदु ङसौ ॥ ८ ॥
दो, तो, दु ये पंचमीके आदेश, और ङसि यानी पंचमी एकवचनका प्रत्यय, ये आगे होनेपर, पूर्व स्वर दीर्घ होता है। उदा.-वच्छाओ वच्छत्तो। 'संयोगे' (१.२.४०) सूत्रानुसार, दीर्घ होनेपरभी (वच्छत्तोमें) -हस्व होता है; तथापि यहाँ उसका ग्रहण करनेका कारण (यहाँ) एत्व (होने) का बाध हो । ङसि कहनेपर, (दो और दु प्रत्यय) सिद्ध होते हुए भी, दो और दु इसका जो ग्रहण किया है वह भी एत्वको अपवाद हो इसलिए । उदा.वच्छाउ वच्छाहिंतो वच्छाहि ॥ धणाओ धणत्तो धणाउ धणाहितो धणाहि ।। गिरीओ गिरित्तो गिरीउ गिरीहितो गिरीहि । गोरिओ गोरित्तो गोरीउ गोरीहि ।। दहीओ दहित्तो दहीउ दही हंतो दहीहि ।। बुद्धीओ बुद्धित्तो बुद्धीउ बुद्धीहितो बुद्धीहि ।। गामणीओ गामणित्तो गामणीउ गामणीहितो गामणीहि । तरूओ तरुत्तो तरूउ तरूहिंतो तरूहि ।। महूओ महुत्तो महूउ महूहिंतो महूहि । घेणूओ घेणुत्तो घेणूउ धेहितो घेणुहि ।। वडूओ वहुत्तो वहूउ वाहतो वहूहि ।। ८॥ सोलुक् ।। ९॥
संज्ञाके आगे होनेवाले सु का (यानी) प्रथमा एकवचन-प्रत्ययका लोप होता है। उदा.-हे देव । हे गंगे। हे गोरि । हे लच्छि। हे गामणि । हे वहु ।। ९॥ उसोऽस्त्रियां सर् ॥ १० ।।
___ङस् को (यानी) षष्ठी एकवचन प्रत्ययको स आदेश होता है; किंतु वह अस्त्रियां यानी स्त्रीलिंग शब्दकेबारेमें नहीं होता। (सूत्रके सर में) र . इत् होनेसे, (स का) द्वित्व होता है। उदा.-वच्छस्स । धणस्स । गिरिस्स। दहिस्स । गाणिस्स। तरस्स । महुस्स । स्त्रीलग-शब्दोंमें नहीं होता, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण स्त्रीलिंगशब्दोंको स्स प्रत्यय नहीं लगता)। उदा.-गंगाए । गोरीए। घेणूए । वहूए ।। १० ।।
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