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हिन्दीअनुवाद
. २, पा.२
विकल्पपक्षमें राजन् शब्दकी तरह-अप्पा भयो । दे अप्पा देभप्यो । अप्पाणो चिन्ति पेच्छ वा । अप्यणा अप्पहिं । अप्पाहिंतो अप्पत्तो अप्पाभो अप्पाउ मप्पा अप्पाहि अप्पासुंतो आअओ। अप्पाणो अप्पाणं । अप्पम्मि अप्पेसु ।। रामाणो राभाणा। राआणं रामाणे । रामआणेण राआणेहिं । रामाणासुतो राजाणाहितो। रामाणस्स राआणाणं । राआणम्मि राआणेसु ॥ विकल्पपक्षमेंराआ, इत्यादि । इसी प्रकार-युवन् जुवाणो जुवाणा जुवा ॥ ब्रह्मन्-बम्हाणो बम्ह! ।। अध्यन्-अद्धाणो अदा ॥ उक्षन्-३च्छाणो उच्छा ॥ प्रावन्-गावाणो गावा ।। पूषन्-पूमाणो पूसा ॥ तक्षन्-तरखाणो तक्खा । मूर्धन्-मुद्धाणो मुद्धा । चन्-साणो सा । सुकर्मन्-सुकम्मःणो सुकम्मा । पेच्छइ स कहं मुकम्माणो, पश्यति स कथं सुकर्मा ॥ पुलिंगमें होनेवाले, ऐसा क्यों कहा है :(कारण नपुंसकलिंगमें ऐसा नहीं होता) । उदा.-शर्मन् सम्मं ॥ ६ ॥ टो वात्मनो णिआ गइआ ॥ ६१ ।।
___ आत्मन् शब्दके आगे ह'नेवाले टा-वचन (-प्रत्यय) को णिआ और णइआ ऐसे आदश विकल्पसे होते हैं। (सूत्रमें) पुनः 'वा' शब्दका ग्रहण होनेस, अगले सूत्रों में विकल नहीं होता। उदा.-अप्पणिमा अप्पणा । विकल्पपक्ष-अप्पाणेण अप्पेण ॥ ६१ ॥ सर्वादोऽतो डे ।। ६२ ।।
अकारान्त सर्वादि (सर्वनाम) के आगे जस् (प्रत्यय) का डित् ए होता है। उदा.-सव्वे । अण्णे । ज । ते । के। इअरे। अवरे । एए। अकारान्त (सर्वादि), ऐसा क्यों कहा है ? (कारण सर्वादि शब्द अकारान्त न हों तो ऐसा भादेश नहीं होता।) उदा.-सन्धाओ ।। ६२ ॥
स्थस्सिम्मि ।। ६३ ।। ___ (इस उत्रने २.१.६२ से) सर्वादेः और अतः पदों की अनुवृत्ति है । अकारान्त सर्वादिके आगे ङि (स. ए. व. प्रत्यय) के स्थानपर स्थ, स्सि और म्मि ऐसे तीन आदेश होते हैं। उदा.-साथ सम्वस्सि सबम्मि। अप्णत्थ पस्सि अण्णम्म । इसी प्रकार सर्वत्र । अकारान्त (सर्वादिके आगे ही ऐसे आदेश होते है, अन्यथा नहीं)। उदा.-अमुम्मि ।। १३ ॥
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