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हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. १
भाति तोदयति इति (उस्तरकी तरह काटता है)। तुद् के खुड. आदेशको डी (डित् ई) प्रत्यय लग गया। (६८) सीउली सीउग्गं (यानी) हिमकाले दुर्दिनम् (हिमकालमें बरसातका दिन)। शीत शब्दके आगे डुल्लि और डग्ग (डित् उल्लि और उग्ग) प्रत्यय आये और त का लोप हो गया। (६९) वाण्डो वरण प्राकार । वृ (धातु)को रण्ड प्रत्यय लग गया। (७०) तत्ती तत्परता। त के आगे तात्पर्य अर्थमें डत्ती (डित् अत्ती) प्रत्यय आगया। (७१) हीरणा त्रप। (यानी) लज्जा । त्रपा अर्थ में णा और हीर ऐसे आदेश आगये । (७२) गामरेडो (यानी) योऽन्तर्भुक्त्वा ग्रामं भुक्ते । ग्राम शब्दके आगे कहे हुए अर्थमें रेड शब्द आया। (७३) लडहा (७४) वेल्लरी विलासरती। लस् (धातु) के आगे डहा शब्द आया और स का लोप हुआ। (वेल्लरी)--वेष्टयन्ते विटा अनया इति (जिससे विट घेरे जाते हैं।) वेष्ट्र के आगे री आया और ष्ट्र का ल्ल हो गया । (७५) दुम्मइणी कलहपरा । दुर्मति शब्दके आगे स्वार्थे स्त्रीलिंगका णी प्रत्यय लग गया । (७६) लज्जाटुइणी लज्जावती । लज्जालु शब्दके आगे स्वार्थे णी प्रत्यय आगया। (७७) तण्णाअं आर्द्रम् (यानी) भीगा हुआ। तम् धातुको (तिम्यतेः), डण्णा (डित् अण्णाअं) प्रत्यय लग गया। (७८) चिक्खअणो असहनः सहन न करनेवाला । नञ् के पूर्व होनेवाले सह धातुके आगे यण आगया और उसको चिक्ख आदेश हो गया। (७९) वणिअं वचनीयम् (यानी) निन्दा । वच धातुके आगे कहे हुए अर्थमें डेणिअ (डित् एणिअ) प्रत्यय आ गया । (८.) सुण्हसिओ निद्रालु । स्वप्न शब्दके आगे शील अर्थमें सिय आया, और न का ग्रह हुआ तथा आद्य अ का उ हो गया । अथवा-संस्कृतम सास्ना यानी निद्रा, फिर 'स्तावकसास्ने' (१.२.१८) सूत्रानुसार उ होनेपर, शील अर्थमें, डसिअ (डित् असिअ) प्रत्यय लग गया । (८१) वप्पिओ केदारः यानी खेत । उप्यन्ते अत्र इति । वप् के आगे पिअ ऐसा शब्द आया। (८२) बंधालो मेलकः (पानी) मेला। बंध् के आगे डोल्ल (डित् ओल्ल) आगया। (८३) वारिजो विवाह । वृ धातुके आगे इज्जण् प्रत्यय आया। 'अचो णिति'सूत्रानुसार वृद्धि हो गई । (८४) साउल्लो (८५) हडहडं अनुरागः (यानी) प्रेम | स्वाद् के आगे कहे हुए अर्थमें उल्ल प्रत्यय आगया। (हहहडं)-हडत् हडत् इति हृदयं स्फुरति यत्र इति; (अन्त्य) त् का लोप होगया। (८६) माणंसी (यानी) मायावी और मनस्वी । (८७) कोडिल्लो कोडओ पिशुनः (यानी) दुर्जन | कुड् धातुके आगे
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