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त्रिविक्रम प्राकृत व्याकरण
हैं) । और उवह ऐसा भी (पश्य अर्थ में) दिखाई देता है । उदा. - उवह गोट्ठमज्झम्मि ।। ७५ ।।
इजेराः पादपूरणे ।। ७६ ॥
उदा.
इ, जे, र ऐसे ये (शब्द) पादपूरणके लिए प्रयुक्त करें । अणा इ । अच्छी इ । अण्णेक्क इ । रूवं तु जे गब्भइ । कलमगोवी र । अहो, हंहो, हा, नाम, इत्यादि संस्कृतसमके रूपमेंही सिद्ध होते हैं P ।। ७६ ।।
प्याद्याः ।। ७७ ॥
पि, इत्यादि ( अपने अपने ) मूल अर्थ में प्राकृत में प्रयुक्त करें । उदा.पि यह अव्यय अपि के अर्थ में (प्रयुक्त करें ) ।। ७७ ।।
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- द्वितीय अध्याय प्रथम पाद समाप्त
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