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हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. १
भवे डिल्लोल्लडौ ।। १७॥
संशाके आगे (अमुकस्थानमें) हुआ इस अर्थमें डित् इल्ल और उल्ल ऐसे ये (प्रत्यय) आते हैं। उदा.- इल-मातुलानी मामी, तत्र भवा मामिल्लिआ। पुरो भवं पुरिल्लं । अघो भवं हेदिलं उपरि भवं उवरिलं। उल्ल-आत्मभवम् अप्पुलं । कुछके मतानुसार, अल और ल ऐसेभी प्रत्यय आते हैं ॥ १७ ॥
स्वार्थे तु कश्च ।। १८ ।।
संज्ञाके आगे स्वार्थे क प्रत्यय विकल्पसे आता है। (सूत्रके) चकारसे डिल्ल (डित् इल) और उल्लड् (ये प्रत्ययभी आते हैं)। उदा.-चन्द्रः चंदओ। हृदयम् हिअअअं । इह इहअं। आश्लिष्टम् आलिद्धअं। (स्वार्थ क प्रत्यय) दो बारभी आता है। उदा.- बहुअअं। (क-प्रत्ययमेंसे) ककारका उच्चारण पैशाची भाषाके लिए किया है । उदा.-वदनम् वतनकम् । डिल्ल-णिज्जिआसोअपल्लविल्लेग, निर्जिताशोकपल्लवेन । पुरिल्लो (यानी) पुरा (पूर्वका) या पुरः (आगे)। उल्लड्-पिउल्लो प्रियः । मुहुल्लं मुखम् । हत्थुल्लो हस्तः । विकल्पपक्षमें-चंदो। इस्यादि । कुत्सा, इत्यादि अर्थमें संस्कृतकी तरह क प्रत्यय सिद्ध होता है ॥ १८ ॥
उपरेः संव्याने ल्लल् ॥ १९ ।।
(इस सूत्रमें २.१.१८ से) स्वार्थे पदकी अनुवृत्ति है । संन्यान (आच्छादन) अर्थमें होनेवाले उपरि शब्दके आगे (स्वार्थे) द्विरुक्त ल (=ल्ल) (यह प्रत्यय) आता है । (सूत्रके लल्में) ल् इत् होनेसे, यह ल-प्रत्यय नित्य आता है। उदा.-उवरिल्लो। संव्यान अर्थमें, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण वैसा न होनेपर, यह प्रत्यय नहीं लगता । उदा.-उवारं ॥ १९ ॥ नवैकाद्वा ॥ २० ॥
नव और एक शब्दोंके आगे स्वार्थे द्विरुक्त ल (=ल) विकल्पसे आता है। उदा.-णवओ णवो | एकल्लो एको ॥ २० ॥
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