________________
९४
त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण (सदाचारसे भ्रष्ट हुई स्त्रीका स्वीकार करता है।) (११) छिच्छओ अक्षिक्षतः यानी अंधा। आँखोंको आनंद देनेके लिए असमर्थ होनेसे । अक्षिमें अकारका लोप हुआ। (१२) मदोली यानी कामपरंपरा, कामपरंपराका कारण होनेसे। आद्य आ का अ हो गया। (१३) संचारी दूती। प्रीतिका संचार कराती, इसलिए। (१४) सहउत्थिआ सहोस्थिता दूती। कार्यमें अनुकूल होनेसे । (१५) मराली (यानी) दूती। मृदु स्वभाव होनेसे या मधुर वाणी होनेसे। (१६) पेसणआरी (यानी) दूती। प्रेषण करती है, इसलिए । (१७) अत्तिहरी दूती। आतिहरी, संतर्पण करनेका स्वभाव होनेसे । (१८) पडिसोत्तो प्रतिकूल अर्थमें । उलटा प्रवाह जिसका है वह । (१९) पडिक्खरो प्रतिकूल अर्थमें । उलटा बहता है, इसलिए । (२०) जोओ (२१) दोसणिज्जन्तो (२२) दोसारअणो (२३) समुद्दणवणीअं चन्द्र । द्योतते (प्रकाशता है) इति द्योतः । ज्योत्स्नायंत्र; यहाँ आ का इ, ज का द और नकारके पूर्व अ आकर (दोसणिज्जतो रूप बन गया)। दोषारत्नम् । (समुद्र-) मंथनसे उत्पन्न होनेके कारण समुद्रनवनीतम्। (२४) चिरिचिरिआ (२५) चिलिचिडिआ धारा । चिरिचिरि, चिलिचिलि ऐसा ध्वनि जिसका है वह। (२६) समुद्दहरं अबुगृह यानी जलगृह । जलधारोंके उपचारसे। (२७) तम्बकुसुमं कुरबक और कुरण्टक । ताम्रकुसुमम् ; वैसे फूल होनेसे । (२८) मुहरोमराई भिउडी अथवा मूंछ । मुखरोमराजि; वैसा स्वरूप होनेसे। (२९) थेवो बिन्दु। कम होनेसे । (३०) धूमद्धअमहिसीओ कृत्तिका। धूमध्वजमहिष्यः, अग्निसे संयुक्त होनेसे। (३१) विसारो सैन्य, विसरण (प्रसरण) स्वभाव होनेसे । (३२) अवहोओ विरह । अपभोगः, भोग शक्य न होनेसे। (३३) पाओ। (३४) पअलाओ, साँप। प्राणियोंको घातक होनेसे, पाप। पादोंको छिपाता है, इसलिए पदलाप। (३५) अहिअलो क्रोध। सर्पकी तरह नाश करता है, इसलिए अहिवल । (३६) सिहिणं स्तन । चूचुक होनेसे शिखित्व (शिखा (चोटी) होना); अस्ति अर्थमें ण। (३७) थिर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org