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त्रिविक्रम - प्राकृत व्याकरण
श्मष्मस्मझामस्मरश्मौ म्हः ।। ६७ ।।
स्मर और रश्मि शब्दों को छोडकर, (अन्य शब्दों में ) इम, ष्म, स्म और ह्म इनको म्ह ऐसा आदेश होता है । उदा. - काश्मीरः कम्हारो । ग्रीष्मः गिम्हो । ऊष्मा उम्ह | | विस्मयः विम्हओ । अस्मादृशः अम्हारिसो । ब्रह्मा ब्रम्हा | ब्रह्मणः बम्हाणो | ब्रह्मचर्यम् बम्हचेरं । स्मर और रश्मि शब्दों को छोडकर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण उनमें स्म और इम इनका म्ह नहीं होता ।) उदा. - स्मरः सरो । रश्मिः रस्सी ॥ ६७ ॥
पक्ष्मणि ।। ६८ ।
(इस सूत्र में १.४.६७ से) म्हः पदकी अनुवृत्ति है | पक्ष्मन् शब्द में स्तु को यानी संयुक्त व्यंजनको म्ह ऐसा आदेश होता है । उदा. पक्ष्माणि पम्हाई । पम्हललोअणो पक्षमललोचनः ॥ ६८ ॥
श्रष्णस्नहृणां हः ।। ६९ ।।
(श्न, ष्ण, स्न, हून, हण और क्ष्ण) इनको ण्ह ऐसा आदेश होता है | उदा.श्न ( का ह) - प्रश्नः पण्हो । शिश्नः सिहो । ष्ण ( का ह) - विष्णुः विहूं । जिष्णुः जिहू | कृष्णः किहो । उष्णीषम् उण्हीसं । स्न ( का ह ) - स्नातः ण्हाओ । प्रस्नवः पण्हओ | ज्योत्स्ना जोण्हा । हून ( का ह)- -जहूनुः जण्हू । हूण (का ह) - पूर्वाह्णः पुण्वहो । अपराहूणः अवरणहो । क्ष्ण ( का ह ) - लक्षणस् सहं । तीक्ष्णम् तिन्हं ॥ ६९ ॥
सूक्ष्मे ॥ ७० ॥
सूक्ष्म शब्द में संयुक्त व्यंजनका व्ह होता है । उदा. - सुहं । सहं ॥ ७० ॥ आश्लिष्टे लधौ ॥ ७१ ॥
आश्लिष्ट शब्दमें संयुक्त व्यंजनोंके अनुक्रमसे ल और ध होते हैं । उदा.आलिद्धो ॥ ७१ ॥
ठौ स्तब्धे ॥ ७२ ॥
स्तब्ध शब्द में संयुक्त व्यजनोंके अनुक्रमसे ठ और ढ होते हैं। उदा.ठड्ढो ॥ ७२ ॥
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