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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
रस्तु' (१.४.८०) सूत्रानुसार, विकल्पसे रेफका लोप प्राप्त होनेपर, उस समय होनेवाला दकारका लोप न हो, इसलिए इस (१.४.७७) सूत्रमें 'अद्रे' ऐसा निषेध कहा गया है ।। ७७ ॥ लवरामधश्च ।। ७८ ॥ . संयुक्त व्यंजनमें (प्रथम स्थान छोडकर) अनन्तर स्थानमें रहनेवाले (अधो वर्तमानानाम् ), और (सूत्रमेंसे) चकारके कारण प्रथम स्थानमें होनेवाले, ल, व् और र् इनका लोप होता है। उदा.-अनंतर रहनेपरल (का लोप)-श्लक्ष्णम् सण्हं । विक्लव: विकओ। व (का लोप)-पक्कः पक्को । विध्वस्तः विद्धत्थो। र (का लोप)-चक्रम् चक्कं । ग्रहः गहो। रात्रिः रत्ती । प्रथम स्थान में होनेपर-ल् (का लोप)-उल्का उक्का। वल्कलम् वक्कलं । व (का लोप)-शब्दः सहो । अब्दः अद्दो । लुब्धकः लुद्धओ। र (का लोप)अर्कः अक्को। तर्कः तक्को ।। ७८ ॥ मनयाम् ॥ ७९ ॥
___ संयुक्त व्यंजनमें (प्रथम स्थानको छोडकर) अनन्तर स्थानमें रहनेवाले म्, न और य इनका लोप होता है । उदा.-म् (का लोप)-युग्मम् जुग्गं । रश्मिः रस्सी। स्मरः सरो। न (का लोप)-नग्नः नग्गो। लग्नः लग्गो। य (का लोप)-श्यामा सामा। कुड्यं कुटुं । यहाँ द्वितीय, कल्मष, माल्य, इत्यादि शब्दोंमें, इन तीन सूत्रोंमेंसे (१.४.७७-७९) नियम यदि लागू हों, तो जैसा वाङ्मयमें दिखाई देगा वैसा लोप हो जाता है। उदा.द्वितीयः पिइओ। द्विगुणः बिउणो। द्वादश बारह । द्वाविंशतिः बावीसा । द्वात्रिंशत् बत्तीसा। कल्मषम् कम्मसं। शुल्बम् सुब्बं । कचित् अनन्तर रहनेवाले (वर्णों) का लोप हो जाता है । उदा.-द्विपः दिवो । द्वीपः दीवो। द्विजातिः हुआई । काव्यम् कव्वं । दिव्यम् दिव्वं । माल्यम् मल्लं । कुल्या कुल्ला। कचित पर्यायसे (लोप हो जाता है।) उदा.-उद्विग्नः उद्दिग्गो उविण्णो। किंतु रेफका सर्वत्र (लोप हो जाता है ।) उदा.-सव्वं । वक्कं । चकं । 'सर्वत्र
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