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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
पर्यस्ते टश्च ॥ ११ ॥
__ पर्यस्तमें स्त का ट होता है। (सूत्रमेंसे) चकारके कारण, थ भी हो जाता है। उदा.-पल्लटो पल्लत्थो ॥ ४१ ॥ वात्ममस्मनि पः ॥ ४२ ॥
आत्मन् और भस्मन् इन शब्दोंमें स्तु का पानी संयुक्त व्यंजनका प विकल्पसे होता है। उदा.-अप्पा अप्पाणो । अत्ता अत्ताणो। भप्पो भस्सो ॥ ४२ ॥ मक्मोः ॥४३॥
ड्म और क्म इनका प होता है। उदा.-कुड्मलम् कुप्पलं । रुक्मिणी रुपिणी । (क्म का) कचित् म भी हो जाता है। उदा.-रुक्मी रुम्मी रुप्पी
पस्पोः फः ॥४४॥
प और स्प इनका फ होता है। उदा.-ष्प (का फ)-पुष्पम् पुप्फ । शष्पम् सप्फ । निष्पावः णिप्फावो । निष्पेषः णि फेसो । स्प (का फ)-स्पन्दनम् फंदणं । प्रतिस्पधी पडिप्फद्धी ।। ४४ ॥ भीष्मे ।। ४५ ॥
(इस सूत्रमें १.४.४४ से) फः पदकी अनुवृत्ति है। भीष्म स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका फ होता है । उदा.-भिप्फो ॥ ४५ ॥ श्लेष्मबृहस्पतौ तु फोः ।। ४६ ॥
(श्लेष्म और बृहस्पति) इनमें फु का यानी द्वितीय संयुक्त व्यंजनका फ विकल्पसे होता है । उदा.-सेप्फो सेम्हो। बिहप्फई पहप्पई ॥ ४६ ॥ ग्मो मः ॥ ४७ ॥
गम का म विकल्पसे होता है। उदा.-युग्मस् जुम्म जुग्ग। तिग्मम् तिग्गं तिम्मं ॥ ४७ ॥
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