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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
क्षमायां कौ ॥२०॥
(इस सूत्रमें १.४.१९ से) छः पदकी अनुवृत्ति है । कु यानी पृथिवी; तद्वाचक होनेवाले क्षमा शब्दमें स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका छ होता है। उदा.-छमा । व्याकरणके नियमानुसार होनेवाले (लाक्षणिक) (क्ष्मा का क्षमा होनेपर) वहाँ भी छ हो जाता है। उदा.-छमा । पृथिवीवाचक (क्षमा शब्द), ऐसा क्यों कहा है। (कारण क्षमा शब्दका पृथिवी अर्थ न होनेपर, छ नहीं होता।) उदा.-खमा, क्षमा (यानी) क्षांति ॥ २० ॥ क्षण उत्सवे ।। २१॥
उत्सव वाचक क्षण शब्दमें संयुक्त व्यंजनका छ होता है । उदा.-छणो। उत्सववाचक (क्षण शब्द), ऐसा क्यों कहा है ? (कारण उत्सववाचक क्षण शब्द न होनेपर, छ नहीं होता।) उदा.-खणो ॥ २१ ॥ स्पृहादौ ॥ २२॥
स्पृहा, इत्यादि शब्दोंमें स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनकाछ होता है। उदा.स्पृहा छिहा । क्षुरः छुरो । क्षीरम् छीरं । वृक्षः वच्छो । क्षेत्रम् छेत्तं । वक्षः वच्छो । कुक्षिः कुच्छी । क्षुतम् छुअं । क्षतम् छ। क्षुण्णम् छुगणं । कक्ष्या कच्छा । कक्षः कच्छो । मक्षिका मच्छिआ । क्षारम् छारं । इक्षुः उच्छ। सदृक्षः सारच्छो। अक्षि अच्छी। स्थगितः छइओ। दशः दच्छो। कौक्षेयकम् कुच्छेअअं । उक्षा उच्छा। सादृश्यम् सारिच्छं । क्षुधा छुहा। लक्ष्मीः लच्छी। लक्ष्म लच्छं। इत्यादि ॥ २२ ॥ थ्यश्चत्सप्सामनिश्चले ।। २३ ॥
(सूत्रमेंसे) अनिश्चले यानी निश्चल शब्दको छोडकर, थ्य, श्च, त्स और प्स इनका छ होता है। उदा.-थ्य (का छ)-पथ्यः पच्छो । मिथ्या मिच्छा। श्व (का छ)-पश्चिमम् पच्छिमं । आश्चर्यम् अच्छेरं । पश्चात् पच्छा । स (का छ). उत्साहः उच्छाहो। मत्सरः मच्छरो। संवत्सरः संवच्छलो। चिकित्सति चिइन्छइ । प्स (का छ)-अप्सरसः अच्छरा। लिप्सते लिच्छइ । जुगुप्सति जुउच्छइ । निश्चल शब्दको छोडकर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण निश्चल शब्दमें थ का छ नहीं होता।) उदा.-णिश्चलो ॥ २३ ॥
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