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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
वुश्च रुव॒क्षे ॥ ७ ॥
वृक्ष शब्दमें संयुक्त व्यंजनका ख होता है, और उसके सानिध्यसे वृकारका रु हो जाता है। उदा.-रुक्खो । यह शब्द स्पृहादि-गणमें होनेसे, क्ष का छ होनेपर, वच्छो (ऐसा वर्णान्तर हो जायेगा) ॥ ७ ॥ क्षः ॥ ८ ॥
क्षकारका ख होता है। उदा.-लक्षणम् लक्खणं । क्षयः खओ। विचक्षणः विअक्खणो । बहुलका अधिकार होनेसे, कचित् (क्ष के) च्छ और झ भी हो जाते हैं। उदा.-खीणं झीणं क्षीणम् । छिज्जइ झिज्जइ क्षीयते ॥८॥ स्थागावहरे ॥ ९॥
___ स्थाणुका अर्थ शंकर ऐसा न होनेपर, स्थाणु शब्दमें स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका ख होता है। यदि शंकर अर्थ अभिप्रेत हो, तो ख नहीं होता। उदा.-खाणू। शंकर अर्थ न होनेपर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण शंकर अर्थ होनेपर ख नहीं होता।) उदा.-थाण ॥ ९॥ स्कन्दतीक्ष्णशुष्के तु खोः ।। १० ॥
(स्कन्द, तीक्ष्ण, शुष्क) इन शब्दोंमें खु का यानी आद्य संयुक्त व्यंजनका ख विकल्पसे होता है । उदा.-खंदो कंदो । तिक्खं तिहं । सुक्खं सुकं ॥१०॥ स्तम्भे ।। ११ ॥
(इस सूत्रमें १.४.१० से) खोः और तु पदोंकी अनुवृत्ति है। स्तम्भमें खु का यानी आद्य संयुक्त व्यंजनका खकार विकल्पसे होता है। उदा.-खंभो थंभो। (यह स्तंभ) काष्ठ, इत्यादिका है। यह नियम(१.४.१० से) पृथक कहा है; कारण इसका उपयोग अगले पत्र में करना है ॥ ११ ॥ थलस्पन्दे ।। १२ ।।
- स्पंदका अभाव इस अर्थमें स्तम्भ शब्द होनेपर, आद्य संयुक्त व्यंजनका लितू (=नित्य) थ होता है। उदा.-यंभो । थंभिज्जइ ॥ १२ ॥ स्त्यानचतुर्थे च तु ठः ।। १३ ॥ .: स्त्यान और चतुर्थ शब्दोंमें, (तथा) सूत्रमेंसे चकारके कारण स्पंदका अभाव इस अर्थमें होनेवाले स्तम्भ शब्दमें, (संयुक्त व्यंजनका) ठ विकल्पसे होता है। उदा.-टोणं थीणं । चउट्ठो चउत्थो । ठभो ठंभिज्जइ ॥ १३ ॥
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