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चतुर्थः पादः
स्तोः ॥ १॥
(स्तोः) यह अधिकार है। 'ईल ज्यायाम्' (१.४.११०) सूत्रतक इसका अधिकार है । समझना है कि यहाँसे आगे जो कुछ अनुक्रमसे कहा जायेगा, वह स्तु का पानी संयुक्त व्यंजनका होता है ॥ १॥ चा रक्ते गः ॥२॥
रक्तमें स्तुको यानी संयुक्त व्यंजनको ग ऐसा आदेश विकल्पसे होता है । उदा.-ग्गो रत्तो ॥ २ ॥ शुल्के ङ्गः ॥ ३ ॥
शुल्कमें संयुक्त व्यंजनको ग ऐसा आदेश विकल्पसे हो जाता है । उदा.सुंगं सुकं ॥३॥ कः शक्तमुक्तदष्टमृदुत्वरुग्णेषु ॥ ४ ॥
(शक्त, मुक्त, दष्ट, मृदुत्व, रुग्ण) इन शब्दोंमें स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका ककार विकल्पसे होता है । उदा.-सको सत्तो (शक्त)। मुक्को मुत्तो (मुक्त)। डक्को दट्ठो (दष्ट)। माउकं मउक्कं माउत्तणं (मृदुत्व)। लुक्को लुग्गो (रुग्ण) ।। ४ ॥ क्ष्वेडकगे खल् ॥ ५ ॥
श्वेडक, इत्यादिमें संयुक्त व्यंजनका खकार होता है। (सूत्रके खल्में) ल् इत् होनेस, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-क्ष्वेडकः खेडओ। क्ष्वेडक शब्द विष का पर्यायी शब्द है । स्फोटकः खोडओ। स्फोटिका खोडिआ ॥५॥ कस्कोर्नाम्नि ॥ ६ ॥
(इस सूत्रमें) ख पदकी अनुवृत्ति है । संज्ञामें (होनेवाले) ष्क और स्क इनका ख हो जाता है। उदा.-पुष्करम् पोक्खरं । पुष्करिणी पोक्खरिणी । निष्कम् णिक्खं । स्कन्धः खंधो। स्कन्धावारः खंधावारो। अवस्कन्दः अवक्खदो । (सूत्रमें) संशामें (होनेवाले), ऐसा क्यों कहा है ? (कारण संज्ञाको छोडकर अन्य शब्दों में ऐसा वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-दुक्करं दुष्करम् । णिकम्पं निष्कम्पम् । णमोकारो नमस्कारः। सक्कभं संस्कृतम् । सक्कारो संस्कारः ॥६॥
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