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३२.
त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण मुकुलादौ ।। ५८ ॥
(इस सूत्रमें १.२.५७ से) उतः और अत् पदोंकी अनुवृत्ति है। मुकुल, इत्यादि शब्दोंमें आध उकारका अ होता है। यह नियम (१.२. ५७ से) पृथक् कहा जानेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-मउलं मुकुलम् । मउडं मुकुटम् । यद्यपि मकुटम् शब्द संस्कृतमें है, तथापि यह नियम मुकुट शब्दके अन्य रूपोंके निवृत्तिके लिए है। मउर मुकुरम् । अगरू अगुरुः । गलोई गुडूची। गरूई गुर्वी। जहु हिलो युधिष्ठिरः। सोअमल्लं सौकुमार्यम् । इत्यादि । बहुलका अधिकार होनेसे, कचित् (उ का) आ होता है । उदा.-विद्रुतः विदाओ ॥ ५८ ।। रो कुटिपुरुषयोरित् ॥ ५९॥
(रुकुटि और पुरुष) इन शब्दोंमें रेफसे संबंधित (रहनेवाले) उकारका इ होता है। उदा.-भिउडी। पुरिसो। पउरिस पौरुषम् ॥५९॥ क्षुत ईत् ।। ६० ॥
क्षुत् शब्दमें उ का ई होता है । उदा.-छी॥ ६० ।। दो दो ऽनुत्साहोत्सन्न ऊच्छसि ॥ ६१:॥
उत्साह और उत्सन्न शब्दोंको छोडकर, उत् उपसर्गके आगे शकार और सकार होनेपर, उत् उपसर्गका दा यानी दकारके साथ ऊ होता है । उदा.-उच्छ्वासः ऊसासो। उच्छ्वसिति ऊससइ । उच्छुकः (अर्थात् ) उद्गताः शुकाः यस्मिन् सः (जिसमेंसे तोते उड गये हैं वह) ऊसुओ। उत्सुकः ऊसुओ। उत्सवः ऊसओ। उत्सरति ऊसरइ। उसिक्तः ऊसित्तो । उत्साह और उत्सन्न शब्दोंको छोडकर, ऐसा क्यों कहा है ! ( कारण इन शब्दोंमें यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-उच्छाहो। उच्छण्णो ॥६१॥ दुरो रलुकि तु ।। ६२ ।।
(इस सूत्रमें १.२.६१ से) ऊत् शब्दकी अनुवृत्ति है। दुर् उपसर्गके बारेमें, र-लुकि यानी रेफ का लोप होनेपर, आच उ का ऊ विकल्पसे होता
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