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हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. ३
४३.
ओहलं उलूहलं उलूखलम् । सोमाली सुउमालो सुकुमारः। ओहलो उऊहलो उदूखलः । लोणं लअणं लवणम् । कोहलं कुऊहलं कुतूहलम् । कोई कहते हैं कि मोर शब्द संस्कृतमें भी है, पर वह अप्रसिद्ध है ॥ ५ ॥ निषण्ण उमः ।। ६ ॥
निषण्ण शब्द में आद्य स्वरको, अगले स्वर और व्यंजन इनके साथ, उम ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-णुमण्णो णिसण्णो ॥ ६ ॥ अस्तोरखोरचः ॥ ७ ॥
यह अधिकारसत्र है। इसका अधिकार शोः सल्' (१.३.८७) सूत्रतक है। यहाँसे आगे जो कुछ हम अनुक्रमसे कहेंगे, वह अस्तो: यानी असंयुक्त, अखोः यानी अनादि, (और) स्वरके आगे रहनेवाले वर्णका होता है, ऐसा समझना है ॥ ७ ॥ प्रायो लुक कगचजतदपयवाम् ।। ८ ।।
असंयुक्त, अनादि रहनेवाले, स्वरके आगे होनेवाले, क, ग, च, ज, त, द, प, य, व इन (व्यंजनों) का प्रायः लोप होता है। उदा.-क (का लोप)लोकः लोओ। शकट : सअडो। तीर्थकरः तित्थअरो। ग (का लोप)-नगरम् पअरं । नगः णओ। मृगाङ्कः मिअंको। च (का लोप)-शची सई। कचग्रहः कअग्गहो । ज (का लोप)---गजः गओ। रजतम् रअ । प्रजापतिः पवई । त (का लोप)-स्तुतः सुओ । यतिः जई। रतिः रई । रसातलम् रसाअलं । द (का लोप)-नदी गई । मदनः मअणः । गदा गआ । प (का लोप)-रिपुःरिऊ । विपुलम् विउलं | सुपुरुषः सुउरिसो। य (का लोप)-जयः जओ। वियोगः विओओ। नयनम् णअणं। व (का लोप)- लावण्यम् लाअण्णं । वडवानल: वडआणलो। यहाँ व का ग्रहण किए जानेसे, बकारका भो ग्रहण होता है। (इसलिए ब का भी लोप होता है ।) उदा.-विबुधः विउहो । प्रायोग्रहणसे कचित (क इत्यादि का लोप) नहीं होता । उदा.-सुकुसुमं । पआगजलं । सुगओ। अगरू । सचावं । विजणं । सुतारं । विदुरो । सपावं | समवाओ। देवो दाणवो। (ये व्यंजन) असंयुक्त (अस्तोः ) होनेपरही (ऐसा लोप होता है, संयुक्त होनेपर नहीं।) उदा.-अक्को । सग्गो। चच्चा । अज्जुणो । धुत्तो। उद्दामो। विप्पो । सव्वं । (ये ध्यंजन) अनादि (अखोः) होनेपरही (ऐसा लोप होता है, आदि
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