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हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. ३
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अ-वर्णके (आगे होनेपरही य-श्रुति होती है, अन्यथा नहीं।) उदा.-विअडं विकटम् । देअरो देवरः । क्वचितू (अ-वर्णके आगे न होतभी यश्रुति) होती है। उदा.-पियइ पिबति ॥ १०॥ कामुकयमुनाचामुण्डातिमुक्तके मोङ्लुक् ।। १ ।।
__कामुक, इत्यादि शब्दोंमें मकारका लोप होता है । (सूत्रके ड्लुक् में) ङ् अनुबंध (इत्) होनेसे, शेष स्वरका उच्चार सानुनासिक होता है। उदा.कामुकः काउँओ । यमुना जउँणा | चामुण्डा चाउँण्डा । अतिमुक्तकम् अइउँतअं। कचित् अइमुत्तअं, अइमुंतअं येभी रूप दिखाई देते हैं ।। ११ ।। खो ऽपुष्पकुब्जकर्परकीले कोः ।। १२ ॥ ___'उकार अनुबंधसे स्ववर्गीय व्यंजनोंका ग्रहण होता है', यह अन्य व्याकरणोंसे सिद्ध हुआ है। जैसे-कु अर्थात् क-वर्ग। चुः यानी च-वर्ग। इसी प्रकार-टु (=ट-वर्ग), तु (-त वर्ग), पु (=प-वर्ग)। कुब्ज शब्द पुष्पवाचक न हो, तो उस शब्दमें, तथा कर्पर और कील शब्दोंमें, कोः यानी क-वर्गका ख होता है। उदा.-खुज्जो। किंतु (कुब्जका) पुष्प अर्थ होनेपर-पंधेउं कुज्जपसूणं । खप्परं । खलिओ ॥ १२ ॥ छागश्रृङ्खलकिराते लकचाः ॥ १३ ।।
(इस सूत्रमें १.३.१२ से) कोः पदकी अनुवृत्ति है। छाग, शंखल,. किरात शब्दोंमें क वर्गके ल, क, च ऐसे [विकार] यथाक्रम होते हैं | उदा.छागः छालो। छागी छाली । शंखलम् संकलं । किरातः चिलाओ-यह (शब्द) पुलिंद अर्थके पर्यायके रूपमें (यहाँ लिया है);, स्वेच्छासे रूप धारण करनेवाला (शंकर), यह (किरातका) अर्थ होनेपर, यहाँका वर्णान्तर नहीं होता। उदा.-. नमिमो हरकिराअं ॥ १३ ॥ वैकादौ गः ॥ १४ ।।
एक इत्यादि शब्दोंमें कु [क वर्ग] का गकार विकल्पसे होता है । उदा.-. एगो। विकल्पपक्षमें-एक्को एओ। आगरिसो आअरिसो आकर्षः। लोगो लोओ लोकः । असुगो असुओ असुकः । तित्थगरो तित्थरो तीर्थकरः । उज्जो--
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