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त्रिविकम-प्राकृत व्याकरण
अगरो उज्जोअअसे उद्योतकरः । सावगो सावओ श्रावकः! अमुगो अमुओ अमुकः । आगारो आआरो आकारः । इत्यादि ॥ १४ ॥ खोः कन्दुकमरकतमदकले ।। १५ ॥
(कन्दुक, मरकत, मदकल) इन शब्दोंमें खु यानी आद्य क-वर्गका ग होता है। यह नियम (१.३.१४ से) पृथक् कहा जानेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता । उदा.-गंदुओ कन्दुकः ! मरगअं मरकतम् । मदगलो मदकलः ॥ १५ ॥ पुन्नागभागिनीचन्द्रिकासु मः ॥ १६ ॥
(पुन्नाग, भागिनी, चन्द्रिका) इन शब्दों में कु (कवर्ग) का म होता है। उदा.-पुण्णामो ! भामिणी । चंदिमा ॥ १६ ॥ शीकरे तु भहौ ।। १७ ॥
शीकर शब्दमें क-वर्गके भकार और हकार विकल्पसे होते हैं। उदा.सोहरो सीभरो सीभरो ॥ १७ ॥ उत्वे दुर्भगसुभगे वः ॥ १८ ॥
__(दुर्भग और सुभग) इन शब्दोंमें उ का ऊ होनेपर, कु (क वर्ग) का वकार होता है । उदा.-दूहवो । सूहवो । (उ का) ऊ होनेपर, ऐसा क्यों कहा है ? (उ का ऊ न हो तो यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-दुहओ सुहओ
निकषस्फटिकचिकुरे हः ॥ १९ ॥
(निकष, स्फटिक, चिकुर) इन शब्दोंमें क-वर्गका ह होता है । उदा.णिहसो । फलिहो । चिहुरो । चिहुर ऐसा शब्द संस्कृतमेंभी है, ऐसा भंगाचार्यका कथन है ॥ १९ ॥ खघथधभाम् ॥ २० ॥
इस सूत्रमें १.३.१९ से] हः पदकी अनुवृत्ति है । असंयुक्त, अनादि रहनेवाले और स्वरके आगे आनेवाले ख, घ, थ, ध, भ इन (व्यंजनों) का प्रायः हकार होता है। उदा.-ख (का ह)-शाखा साहा । मुखम् मुहं । लिखति लिहइ। घ का ह]-मेघः मेहो । जघनम् जहणं ! श्लावते सलाहइ । थ (का ह)-नाथ:
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