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.... प्रतः उपयुक्त पर्थ के अनश्यं को देखकर मेरी भावना यह हुई कि इस ग्रन्थ का मापरंपरा के अनुकूल
अनुवाद होना अति पावश्यक है । अब मैंने और नि: संवत् २५०२ में मगसिर शुक्ला वितीया के दिन इस ग्रन्थ का अनुवाद कार्य प्रारंभ करके पत्र कृष्णा नवमी "श्रीवृषभजयंती" के पवित्र दिन इस ममुपाद कार्य को पूर्ण किया है।
मैंने यह मनुभव किया है कि प्रन्थों के अनुगव के समय अत्यधिक एकापता हो जाती है । मन उसी पर्य के चितन में तम्मय हो जाता है। परिणामों में निर्मलता पासी है। पतिचार प्रादि दोपों का शोधन होता है, राग्य पौर बढ़ते हैं तथा निजात्म भावना न होती है।
___ इस मनुवाद में कहीं कहीं भावार्थ और विशेषार्थ देकर प्रथं स्पष्ट करने में मैंने धवला प्रादि सत्ताईस अन्यों से सहायता ली है और यथास्थान उन ग्रन्थों के टिप्पण भी दे दिये हैं यह मनुवाद प्रध्यात्म ग्रन्थ का सही मयं कराने में सक्षम होगा भौर मार्पपरपरा के अनुयायियों को प्रिय होगा यह मेरा पूर्ण विश्वास है ।
हस्तिनापुर पौष वदो २ वीर नि० सं० २५११ दि. १०-१२-१९८४
-प्राधिका शानमती