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पुन: कहते हैं
कवि सम्सदि काबुले पहिरुमणार करेल मामय । सत्तिविहीणो जो जा सररहन चेष कापव्वं ॥१५४।।
यदि शक्ति है तो ध्यानमय-निश्चय प्रतिक्रमण प्रादि करना चाहिये और यदि शक्ति नहीं है सो भवान ही करना चाहिये । टीकाकार ने इसमें शक्ति से उसम संहनन लिया है प्रोर शक्तिविहीन से- इस पंचम काल में होन संहनन होने से कहा है । अत: यह उत्तमसंहननरूप शक्ति श्री कुदकुददेव में भी नहीं थी वे स्वयं अपने प्रयान को दो पद रखते हुये भाजकल के पंरपरल के मुनियों को बवान मी प्रेरणा रहे हैं ऐसा समझना चाहिये ।
श्री कुदकुददेव विशाल संध के प्राचार्य थे। इन्होंने गिरनार पर्वत पर यदेतपटों से विवाद होने पर पाषाण को मूर्ति मो बुलवा दिया था यह बात पनेकप्रमाण से मिद्ध है। गुर्वावनी में कहा है--
पनि गुरुजांतो बलात्कार गणापगीः, पावाणघटिता येन पारिता श्री सरस्वती । ऊर्यतपिरो तेम पाः सारस्वतोऽभवत्, अतस्तस्म मुनीमाय नमः धोपयनंदिने ।।
बलात्कारपरण के प्रग्नणी श्रीपपनदि प्राचार्य हुये जिन्होंने प्रगिरि पर पापारनिमित सरस्वती की गति को चुनवा दिया था। उसी से सारस्वतगछ प्रसिहपा है, उन पहनंदी मनिनाथ को नमकार हो । इन कृदाद देवके (-बुदकुद, २- वग, ३-साना - पिसा: :.--
पदा में नाम थे । पोरवपुराण में कहा है फुदकुदगणी येनोजयंतागरिमस्तके । सोऽवलात वादिता साह पापाणरिता केलो।
नात्रि वृन्दावन ने भी कहा है--
संघ सहित श्री कुदकुद गुरु पंचमहेत गये गिरनाः।
बादपर्यो तहं संसयमति को, साक्षी बदो अंबिकाकार ॥ "सत्यपय निर्णय दिगंबर" कही पुरी तहं प्रगर पुकार ।
सो गुब्वेव वसो घर मेरे विघन हरण मंगम करतार ।।
इन्होंने पपना प्राचार्यपट्ट समास्वामी को दिया है । गुर्वावलों में यह पाट है-मादि यदा-१-श्रीगुप्तिगुप्त, २-भद्रगहु. ३-माघनंदी, ४-जिमचंद्र, ५- ६ ६-मास्वामी यही बात नंदिसंघ की पावलो में भी है-यथा-४-जिनचन्द्र, ५-कुदकुंदाचार्य, ६-उमास्वामी । " प्रादि
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१-तीर्थकर महावीर मोर उनकी प्रापाबंपरपरा, भाग ५, पृ० २१३, पृ०४४।