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ओ दम्प, गुण और पर्यायों में वित्त लगाते हैं वे प्रन्यवश हैं । भोहोपकार से रहित श्रमणों ने ऐसा कहा है। यहां पर भी प्रव्य गुणपर्यायों के चितन को छुड़ाकर मात्र निर्विकल्प ध्यान की प्रेरणा दी है। मी कुपददेव स्वयं इस मशरण से कथंचित् अन्यषण माने या सबाने हैं । भागे भौर यो समण किया है कि
अंतरवाहिरअप्पे मो बट्टा सो हवेह बहिरम्पा ।
मध्येच मो म बट्टा सो उच्च अंतरंगपा ॥१५०॥ जो अंतर और बाह्य जरूप में रहते हैं ये बहिरात्मा है और जो जरूप में वर्तन नहीं करते हैं वे अंतरात्मा है।
यहा टीकाकार ने कहा है कि जो पपने पारमध्यान में तत्पर हुये सप्रकार से अंतर्मुख होकर गुम अशुभ समस्त विकल्प जाल में कभी को नहीं पतंसे हैं वे हो "परमतपोधन" साक्षाद पनगरमा है । यह लक्षण बारहवें गुणस्थानवर्ती मुनि में घटेगा।
श्री कुदकुददेव भी साक्षात् बारहवें गगास्थानमाले अत्तरात्मा न होकर छठे सातवें गुणस्थान वामे मध्यम मंतरामा थे। उनके प्रशस्तरूप अतair जन्म दूनही हुये थे। पागे मोर कहते है
को धम्ममुक्कझापा म्हि परिणयो सोवि अंतरंगप्पा ।
माणविहीणो ममणी बहिरापा इपि विजाणोहि ॥१५॥ जो घर्गगुबलध्यान में परिणत हैं, ये पताम! है, ध्यान से रहित बमण बहिररात्मा है। इसकी टोला में कहते हैं-"इह हि समात् मंतरात्मा भगवान् क्षीण कालाप: स्य खलु भगवतः भोणकपायस्य पोटा कपागणामभावात् ...........।" यहां पर साक्षात् अंतरात्मा होणकषायवर्ती भगवान है, उन भगवान् बारहवें गुणस्थानवर्ती महामूमि के अनंतानुबंधी यादि सोलह कपायों का प्रभाव हो चुका है।
यह मशरण मो श्री
कुददेव ३ टोमाकार श्री पपप्रभमलघारी देव में घटित नहीं हो सकता है।
पुन: स्वयं प्रयकार कहते हैं
पपणमयं परिकम वयणमयं पन्दवाण जियम छ ।
आलोपणबयममयं तं सध्वं जाण सरमायं ॥१५॥ वयनमय प्रतिक्रमण, बपनमय प्रत्यास्थान, वानमय नियमप्रायश्चित्त पौर घनमम पालोपना इन सबको तुम स्वाध्याप समझो। कुरकुददेव स्वयं वचनमपी कियायें करते थे।