Book Title: Niyamsar
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 15
________________ २० इस विवाद निरसन प्ररंथ में गाथा ३१-३२ ४१ तथा ५३ को टीका में कुछ विवाद हैं। उन उन स्थलों में टीका का अर्थ करके मैंने विशेषार्थ में अन्य शास्त्रों के प्रमाण देकर विवाद का निरसन कर दिया है। श्री कुंदकुंददेव की चर्चा : नियमसार कथित निश्चय प्रतिक्रमण आदि क्रियाये श्री कुंदकुददेव के पूर्णरूप से थीं नया ? उसो को दिखाते हैं - निश्चय प्रतिक्रमण में कहा है बत्ता अगुतिमावं तिगुगुसी हवे जो साहू सो पडिकमणं उच्च पडिकमणमओ हवे जम्हा ॥८६॥ जो साघु प्रगुप्ति भाव को छोड़कर सोनगुप्ति से गुप्त होते हैं ये प्रतिक्रमण करते है क्योंकि वे प्रतिकममय हैं। इसमें टीकाभर ने कहा है कि जो मुनश्वर त्रिगुप्ति से गुप्त निबिकरूप परम नमः धिलक्षण से लक्षित प्रति पूर्व प्रत्मा को ध्याते हैं वे ही निश्चय प्रतिक्रमण स्वरूप है। श्रीकुवकुददेव कदाचित् पातयें गुणस्थान के स्वस्थान अप्रमत्त भाग में अंशात्मक यह ध्यानरूप प्रतिक्रमण करते होंगे फिर भी उनके भो व्यवहार गुप्तियां ही मानी जानी चाहिये कि निश्चय गुप्तियों में तो अवधिज्ञान संभव है। निश्चय प्रत्याख्यान में कहा है मो सयम जपमागय सह असह् वारणं किच्वा । अप्पा जो शायद पच्चक्खाणं हवे तस्स ॥ ९५ ॥ I जो मुनि सकल को और अनागत एवं शुभ-अशुभ को छोड़कर आत्मा का न करते हैं उनके प्रत्याख्यान होता है । इसमें भी टीकाकार ने मंपूर्ण शुभ प्रशुभ द्रव्य-भाव कर्मों के सुंदर को प्रत्याख्यान कहा है। जो कि बारहवें गुणस्थान में घटेगा। श्री कुचकुः ददेव ग्रन्थ रचना करते थे, उपदेश करते थे मतः शुभरूप बाह्यरूप धीर अंतरूप उनके या हो था । निश्चय आलोचना में कहा है गोमकम्मरतियं विहावगुणजह दविरित । अप्पा जो मार्यादि समस्सालोयणं हषि ।। १०७॥ जो कर्म नोकर्म में रहित और विभाव गुण पर्यायों से रहित प्रारमा का ध्यान करते हैं उन श्रमण के मालोचना होती है । यह भी निविकल्प शुद्धोपयोग परिणतिरूप ध्यान में घटेगी। यह मालोचना श्री प्राचार्य देव को. कदाचित हो ध्यान में घटती होगी । निश्चय प्रायश्चित में कहा है सुह असुवणरयणं रामाबीभाववारण किया । अपाणं जो प्रायदि, तस्स हु नियमं हुवे वियमा ॥१२०॥

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