Book Title: Niyamsar
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 14
________________ कोऽपि क्यापि मुनिर्वभूव सुरुतो काले कप्तावप्यालं'। ऐसे ही एको भाति कलो पुणे मुनिपतिः पापाटवीपावकः ॥ टीकाकार ने एक बार में "शाशो" मेरे सिंगे क. स्पेतु झोरे ऐसी प्रार्थना की है मालोचना सततरगयास्मिका या मिमुक्तिमार्गफसदा यमिनामजन'। शुवात्मतस्वनिपतावरणानुल्पा, स्पासंपतस्य मम सा किस कामधेनुः ॥१७२।। इन सुन्दर-सुन्दर चौबीस कलश-काव्यों को मैंने परिशिष्ट में दे दिया है। श्रीकुन्दकुन्द की गाथायें : गाथा ७ की टीका में टोकाकार ने कहा हैतथा चोक्त श्री कुबकुदाघायं देवः - "तेमो-विठ्ठी गाणं इड्डी साणं सहेब ईमारपं । सिहवणपहागवायं माहप्पं अस्स सो अरिहा ।" यह गाथा प्रवचनसार को है। अमृतचंद्रसूरि ने इसको टोका नहीं की है । जय सेनाचार्य ने इसकी टीका को है । इससे यह विदित होता है कि जयसेनाचार्य ने भो भी अधिक गायायें कदकुददेव की मानकर समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाप में लेकर उनकी टीका की है वे पन्य प्राचार्यों को भी कुदकुदकृत मान्म रही हैं । महासेन पंडितदेव कोन है : गाथा १५९ की टीका में टीकाकार ने कहा हैउक्त' च षष्णवतिपाxि विजपोपानितविशालकीतिमिनहारे,नपतिदेवः "यथावर वस्तुमिणोतिः सम्याज्ञानं प्रदोपवन् । तत्स्वार्थव्यवसायात्म कपंचितप्रमितेः पृथक् ।।" प्रागे माथा १६२ की टोना में भी ऐसे ही हैनया घोक्त श्रीमहासेनपरित: - "मानादमिन्नो न चामिनो भिन्नाभिन्नः कथंचन । हानं पूपिरोभूतं सोऽयमात्मेति कीर्तितः ।।" ये ९६ पार पाखंडियों के साथ शास्त्रार्थ में विजयी होने वाले श्री महासेम परिसदेव कौन है ? बंधे ये दोनों श्लोक "स्वरूप संबोधन" के हैं, जो कि श्री प्रकलंकदेव को रचना प्रसिद्ध है। प्रतः इस विषय में अन्वेदक विद्वानों को विचार करना चाहिये । १ कलशकाव्य २४१ २ कलाकाव्य २१५

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